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निर्गुण पद्म

-मनोज कुमार

मध्यप्रदेश के प्रहलाद टिपणिया को इस वर्ष का पद्मश्री से सम्मानित किया जाना पद्मश्री निर्गुण है, इस बात को एक बार फिर स्थापित किया है। प्रहलाद कोई राजनैतिक शख्शियत नहीं है और न ही वह कोई पहुंच रखने वाले परिवार का वारिसदार। वह एक लोक गायक है जो बीते पच्चीस बरस से कबीर के शब्दों को अपनी आवाज देकर दुनिया में उजाला फैलाने में लगा हुआ है। प्रहलाद को यह सम्मान मिलना इस बात का संदेश है कि यह सम्मान आज भी निर्गुण बना हुआ है और आगे भी निर्गुण मन को मिलता रहेगा। अखबारों में, खासकर मध्यप्रदेश के अखबारों में प्रहलाद को पद्मश्री मिलने की खबर को प्रमुखता नहीं मिली है, जो मेरे लिये दुख का कारण हो सकता है। प्रशासनिक और राजनीतिक क्षेत्रों के लोगों को यह सम्मान मिलना कोई बड़ी बात नहीं है किन्तु एक लोकगायक का यह सम्मान अर्थात पद्मश्री का सम्मान है।

मालवा की माटी का यह सपूत कबीर की तरह निर्गुण है। लोभ लालच से परे जब वह कबीर के पदों को गाता है तो सुनने वाले ठिठक जाते हैं। पच्चीस बरस से कबीर और प्रहलाद का जादू दुनिया पर चल रहा है। इस निर्गुणी गायक का सम्मान पहली दफा नहीं हुआ है बल्कि संगीत नाटक अकादमी दिल्ली और मध्यप्रदेश का सर्वाेच्च शिखर सम्मान से भी उन्हें नवाजा जा चुका है। प्रहलाद टिपणियां की आवाज का जादू मालवा के माटी में रचा बसा तो है ही वाराणसी के कबीर चौरा को भी यह आवाज गूंजती है। कबीर फांउडेशन इसका दस्तावेजीकरण कर रही है तो प्रहलाद की मीठी तान अमेरिका तक गंूजने लगी है। प्रहलाद को अपनी भारत की धरती के लोगों को रूढ़ियों के खिलाफ जगाने से फुर्सत नहीं मिली है सो वह अमेरिका नहीं गये। अमेरिकी प्रोफेसर को लगा कि ऐसे निर्गुणी के पास खुद को आना चाहिए वह तलाश करती हुई मालवा के गांव लुनियाखेड़ी पहुंच गयी। प्रोफेसर डॉ. लिंडा हैंस कबीर की वाचिक परम्परा पर शोध कर रही हैं।

प्रहलाद से अनेक बार मुलाकात हुई। भोपाल में तो अनेक बार। एक बार दिल्ली में भी उन्हें सुनने का अवसर मिला। प्रहलाद को सुनना हर बार एक नये रूप में होता है। मन भरता ही नहीं। कबीर को पढ़ा है और प्रहलाद को सुना। दोनों को मिला दो तो एक नये रूप से आपका परिचय होगा। कदाचित मुझे लगता है कि जो लोग समाज बदलने की बात मंचों पर चिल्ला चिल्ला कर कर रहे हैं, वे एक बार प्रहलाद के मुख से कबीर की वाणी सुन लें तो वे स्वयं बदल जाएंगे। प्रहलाद टिपणियां आज भी वैसा गायक है जिसकी आवाज में बनावट नहीं है। उसका ध्येय रूढ़ियों खिलाफ समाज को जगाने का है और वह इस सिलसिला को आगे बढ़ा रहा है। वह कहता है कबीर तो बेराग है, उसके शब्दों में संदेश है। वह समाज को एक नये स्वरूप में देखना चाहता है। प्रहलाद टिपणियां कहते हैं- सब काहू से लीजिए, सांचा शब्द निहार। शायद अब इसके बाद कुछ कहने, लिखने और बताने की जरूरत नहीं है।

टिप्पणियाँ

  1. कबीर को पढ़ना और सुनना बहुत सुकून देता है। प्रह्रलाद को मिले सम्मान और इस ख़बर को हम तक पहुंचाने के लिए बधाई। क्या प्रह्ललाद जी को नेट पर या सीडी पर भी सुना जा सकता है?
    -राजेश अग्रवाल

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