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फ़रवरी 12, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Aaj-Kal

रंगमंडल की उदासी से मुस्कराया राज्य नाट्य विद्यालय मनोज कुमार तीस बरस पहले जब भोपाल में भारत भवन की स्थापना हुयी थी तो यह भारत भवन एक उम्मीद की बुनियाद थी। संस्कृति, कला और साहित्य के लिये। भारत भवन के बूते भोपाल ने पूरे विश्व में एक सांस्कृतिक नगर का गौरव पाया था। बाद के  वर्षाें में अपने अनेक उत्कृष्ट आयोजनों के साथ दुनिया के कला मंच पर भारत भवन की ख्याति बढ़ती गयी और उम्मीदें भी। आहिस्ता आहिस्ता समय गुजरता गया। इस गुजरते समय ने भारत भवन की पहचान को पुख्ता नहीं किया बल्कि ख्याति सीजने लगी। स्वार्थाें की यह सड़न और सीड़न ने भारत भवन को असमय असामयिक बना दिया। तीस बरस के इस सफर में उसकी खूबियां, उसकी कामयाबी और उसकी चमक विवादों में खो गयी। कल का कलागृह अब कलह गृह के रूप में पहचाना जाने लगा और बाद के वर्षाें में यही उसकी स्थायी पहचान बन गयी। इस तीस बरस की समीक्षा करेंगे तो पाएंगे कि जिस तरह संस्कृति और कला के साधकों ने इस पर अपनी धाक जमाने की कोशिश की तो राजनेताओं ने भी इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दिल्ली तक अपनी आवाज की छाप छोड़ने के लिये जब भी जरूरत पड़ी, भारत भवन का इस्तेमाल किया गय