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मई 6, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सब्सिडी के त्यागी

मनोज कुमार             नेताओं के बारे में कहा जाता है कि वे अपने प्रचार के लिये कोई भी अवसर नहीं खोते हैं. पिछले कुछ महीनों से यह देखा जा रहा है कि जो भी नेता, मंत्री, विधायक या अन्य पदों पर विराजे लोग गैस सब्सिडी छोड़ रहे हैं, इस पर बकायदा अखबारों के लिये खबर जारी की जाती है. हालांकि वे इस बहाने अपने नेता नरेन्द्र मोदी तक तो बात पहुंचाना चाहते ही हैं कि उनके आदेश का पालन किया गया है और आम आदमी के बीच अपनी छवि भी बनाना चाहते हैं. सवाल यह है कि एक नेता के गैस सब्सिडी छोड़ दिया जाना खबर है या अब तक उसकेे द्वारा गैस सब्सिडी का लाभ लिया जाना? क्या इस पर कोई विमर्श नहीं होना चाहिये कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनते और वे अपने नेताओं को सब्सिडी छोडऩे के लिये निर्देश नहीं देते तो क्या उनका जमीर स्वयं होकर नहीं जागता? क्या उन्हें नहीं लगता कि भारी-भरकम मानदेय के साथ ही अनेक किस्म की सरकारी सुविधाओं से लैस होने के बाद भी वे सब्सिडी का लाभ उठाना अनुचित था?             सब्सिडी के मुद्दे पर एक सवाल यह भी उठता है कि एक के बाद एक नेता सब्सिडी छोडऩे का ऐलान कर रहे हैं. क्यों एक साथ समूचे लोग सब्