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मार्च 20, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पानी पानी रे...खारे पानी रे...

 विश्व जल दिवस पर चिंता करता लेख मनोज कुमार दो दशक पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने की परिकल्पना की थी तब उनकी सोच रही होगी कि इस आयोजन के बहाने दुनिया जागेगी और एक पानीदार समाज का निर्माण होगा लेकिन जब हम पलटकर देखते हैं कि आंखों से पानी उतर रहा है और गला सूखता चला जा रहा है। यह आज का सच है। हमारे समय के लेखक एवं चिंतक अनुपम मिश्र को पानीदार समाज की चिंता करते हुए हम स्मरण कर लेते हैं। ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के बहाने हम उन सुनहरे दिनों को याद कर लेते हैं लेकिन यह सब किताबी बातें रह गयी हैं। तालाब और पोखर को पाटकर बहुमंजिला इमारतें इठला रही हैं और हम बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। कहा जाता रहा है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा लेकिन जो हालात बन रहे हैं, उसे यह प्रतीत होता है कि बिना युद्ध किये ही हमने अपने मरने की तैयारी कर ली है। अलग-अलग स्रोतों से जो जानकारी हासिल होती है, वह ना केवल पानी के बर्बादी की कहानी कहती है बल्कि हमारे भविष्य के सामने भी सवालिया निशान खड़ा करती है। जैसे - मुंबई में प्रतिदिन वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता ह