सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फ़रवरी 11, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नागर समाज से समुदाय का रेडिय

 13 फरवरी विश्व रेडियो दिवस पर विशेष मनोज कुमार कभी नागर समाज के लिए प्रतिष्ठा का प्रतीक होने वाला रेडियो आज समुदाय के रेडियो के रूप में बज रहा है। समय के विकास के साथ संचार के माध्यमों में परिवर्तन आया है और उनके समक्ष विश्वसनीयता का सवाल खड़ा है तो रेडियो की विश्वसनीयता के साथ उसका प्रभाव भी समूचे समाज पर है। ऑल इंडिया रेडियो से आकाशवाणी का नाम धर लेने के बाद एफएम रेडियो और सामुदायिक रेडियो की दुनिया का अपरिमित विस्तार हुआ है।  करीब ढाई सौ वर्षों से प्रिंट मीडिया का एकछत्र साम्राज्य था जिसे कोई पांच दशक पहले इलेक्ट्रानिक मीडिया के आगमन के साथ चुनौती मिली। इन माध्यमों के साथ रेडियो का संसार अपने आप में अकेला और अछूता था। अपने जन्म के साथ रेडियो प्रामाणिक एवं उपयोगी रहा है और नए जमाने में रेडियो की सामाजिक उपयोगिता बढ़ी है। रेडियो क्यों उपयोगी है और रेडियो की दुनिया किस तरह बढ़ती गई है, इसके बारे में विस्तार से चर्चा करना जरूरी होता है। महात्मा गांधी से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों तक पहुंचने के लिए संचार माध्यम में रेडियो को चुना। रेडियो अपने जन्म से विश्वसनीय रह