सोमवार, 19 नवंबर 2012

समागम का यह नया अंक
 मध्यप्रदेश एवं छग के सालगिरह पर केन्द्रित है। 
साथ में बेटी बचाओ अभियान पर मीडिया की भूमिका पर शोध पत्र  शामिल है।
अंक पर आपकी राय की प्रतिक्षा रहेगी 

यह सजा ठीक है



मनोज कुमार 
आजाद भारत में विकास और भ्रष्टाचार एक-दूसरे के पर्याय बनते चले जा रहे हैं. भ्रष्टाचार से निपटने के लिये कई किस्म की कोशिशें जारी हैं, यह कोशिशें कितना कामयाब होती है, यह समय बतायेगा. फिलवक्त मध्यप्रदेश सरकार ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जो कदम उठाया है, उसका स्वागत किया जाना चाहिये. मध्यप्रदेश में अधिकारी तो अधिकारी, बाबू भी मालामाल हैं और यह खुलासा रोज ब रोज पडऩे वाले छापों और उसमें बरामद हो रही माल असबाब से समझ आ रही है. इस फैसले के कई अर्थ हैं. बेनामी सम्पत्ति हासिल करने के लिये दोषी को तो सजा कानूनन मिलेगी लेकिन जो सम्पत्ति है, वह राज्य की है और राज्य के हित में ही उसका उपयोग होना चाहिये. राज्य सरकार ने खरगोन जिले के एक बाबू की संपत्ति पर आदिवासी बच्चों के लिये स्पोटर््स काम्पलेक्स बनाने का फैसला किया है. सरकार का यह फैसला सुकून देने वाला है. अब तक मध्यप्रदेश में इस तरह का कोई फैसला नहीं लिया गया है. सरकार के इस फैसले से न केवल समाज की सम्पत्ति का उपयोग समाज हित में होगा बल्कि जो प्राकृतिक सम्पदा इस सम्पत्ति के निर्माण में खर्च हुईहै, वह भी बेकार नहीं जाएगी. 

मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ समय समय पर कार्यवाही होती रही है किन्तु हर कार्यवाही विंध्वसक रही है. बेजा कब्जा कर भवन बनाया तो उसे डायनामाइट लगाकर उड़ा दिया गया. यह अनुभव राजधानी भोपाल में और इसके पहले व्यवसायिक नगरी इंदौर के साथ ही दूसरे जगहों की रही है. यह तय है कि जिस जमीन पर निर्माण हुआ, वह सरकार थी लेकिन इस पर बनायी गयी बिल्ंिडग में लोग रह रहे थे, काम धंधा कर रहे थे और ऐसे में हजारों परिवारों के सामने बेकारी और बेबसी पैदा करना न्यायसंगत नहीं जान पड़ता है. बम के धमाके से दहशत पैदा होती है और इस दहशत से आक्रोश और यही आक्रोश आने वाले दिनों में समाज के लिये मुसीबत का सबब बनता है,इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. बेहतर होता है कि ऐसे निर्माण को सरकार अपने आधिपत्य में ले और उस पर इतना जुर्माना लादे कि अवैध निर्माण करने वाले की कमर टूट जाये. वहां रहने वाले, काम धंधा करने वालों को सरकार अपने अधीन करे और उन्हें सुरक्षा का आश्वसन दे ताकि उनमें भविष्य को लेकर भय या संशय नहीं रहे. इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि मकान दुकान खरीदने वाले अधिकांश लोग मध्यमवर्गीय परिवार के होते हैं और अपने जीवन भर की संचित कमायी से कुछ करने की कोशिश करते हैं. उन्हें इस बात का पता ही नहीं चलता है कि जिसे वह अपना भविष्य मान रहे हैं, वह दरअसल कानूनी तौर पर गलत तरीके से बनाया गया है. भवन निर्माता ऐसे दिलासा दिलाते हैं कि उन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी. जब मुसीबत टूटती है तो भवन निर्माता किनारा कर लेते हैं क्योंकि उन्हें जो कमाना था, वे कमा चुके होते हैं. जिनका आशियाना उजड़ता है, उनका दर्द वो लोग ही जानते हैं.

बहरहाल, मध्यप्रदेश सरकार ने जिस तरह भ्रष्टाचारी के सम्पत्ति पर स्पोटर््स काम्पलेक्स बनाने का फैसला किया है, वह अच्छा फैसला है. यह फैसला अपवाद न बनकर नजीर बने तभी इसकी सार्थकता सिद्ध होगी. हालांकि मध्यप्रदेश के पहले बिहार में और कुछ राज्यों में ऐेसे ही इक्का-दुक्का प्रयास जानने और सुनने को मिले थे किन्तु वहां भी ऐसे फैसलों को नजीर बनाने की कोशिश नहीं हुई. मेरा मानना है कि सरकार इस तरह सजा दे जिससे दोषी को तो सजा मिले लेकिन जिन लोगों की गलती नहीं है, उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय ना दिखे. इससे यह भी होगा कि समाज में जो तंत्र के खिलाफ गुस्सा उबल रहा है, उस पर भी नियंत्रण पाया जा सकेगा और एक विश्वास का माहौल बनेगा. उम्मीद करते हैं कि अकेले मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि सभी राज्यों में भ्रष्टाचारियों की सम्पत्ति जनहित में उपयोगी हो.

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