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राजेन्द्र माथुर की गैरहाजिरी के 25 साल

जन्मदिन 8 अगस्त पर विशेष -मनोज कुमार वरिष्ठ पत्रकार  किसी व्यक्ति के नहीं रहने पर आमतौर पर महसूस किया जाता है कि वो होते तो यह होता, वो होते तो यह नहीं होता और यही खालीपन राजेन्द्र माथुर के जाने के बाद लग रहा है। यूं तो 8 अगस्त को राजेन्द्र माथुर का जन्मदिवस है किन्तु उनके नहीं रहने के पच्चीस बरस की रिक्तता आज भी हिन्दी पत्रकारिता में शिद्दत से महसूस की जाती है। राजेन्द्र माथुर ने हिन्दी पत्रकारिता को जिस ऊंचाई पर पहुंचाया, वह हौसला फिर देखने में नहीं आता है। ऐसा भी नहीं है कि उनके बाद हिन्दी पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में किसी ने कमी रखी लेकिन हिन्दी पत्रकारिता में एक सम्पादक की जो भूमिका उन्होंने गढ़ी, उसका सानी दूसरा कोई नहीं मिलता है। राजेन्द्र माथुर के हिस्से में यह कामयाबी इसलिए भी आती है कि वे अंग्रेजी के विद्वान थे और जिस काल-परिस्थिति में थे, आसानी से अंग्रेजी पत्रकारिता में अपना स्थान बना सकते थे लेकिन हिन्दी के प्रति उनकी समर्पण भावना ने हिन्दी पत्रकारिता को इस सदी का श्रेष्ठ सम्पादक दिया। इस दुनिया से फना हो जाने के 25 बरस बाद भी राजेन्द्र माथुर दीपक की तरह हिन्दी प