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अक्तूबर 22, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मीडिया में आत्महत्य

मनोज कुमार भोपाल में हाल ही में पत्रकार राजेन्द्र राजपूत ने तंत्र से तंग आकर आत्महत्या कर ली। ऐसा करने वाले राजपूत अकेले नहीं हैं। मीडिया वाले अनेक वेबसाइट पर जांचा तो देखा कि हर प्रदेश में एक राजेन्द्र राजपूत हैं। कुछेक राजेन्द्र के नक्शेकदम पर चल पड़े हैं तो कुछेक अभी मुसीबत से घिरे हुये हैं। यह आश्चर्यजनक ही नहीं, दुखद है कि जिन लोगांे ने समाज को जगाने और न्याय दिलाने की शपथ लेकर फकीरी का रास्ता चुना है, आज उन्हें मरने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है। सरकार गला फाड़-फाड़ कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई दे रही है और पत्रकार एक के बाद एक जान देने के लिये मजबूर हैं। अभिव्यक्ति की आजादी का यही सिला है तो पराधीन भारत ही ठीक था जहां गोरे जुल्म करते थे लेकिन शिकायत तो यह नहीं थी कि अपने लोग ऐसा कर रहे हैं। स्वाधीन भारत में पत्रकारों का यह हाल देखकर यह सोचना लाजिमी हो गया है कि आने वाले दिनों में पत्रकार नहीं, प्रोफेशनल्स ही मिलंेगे। और ऐसी स्थिति में पत्रकार मिले भी क्यों? क्यों वह समाजसेवा भी करे और बदले में जान भी गंवाये। एक प्रोफेशनल्स के सामने कोई जवाबदारी नहीं होती है। वह ट