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अक्तूबर 10, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

असत्य ही असत्य!

मनोज कुमार इस बार जब मेरे मोहल्ले में रावण का कद नापा गया तो इस बार उसका कद कुछ फीट और बढ़ गया था। मैं पिछले कई सालों से देख रहा हूं कि मेरे मोहल्ले का रावण साल दर साल ऊंचा होता चला जा रहा है। बिलकुल वैसे ही जैसा कि हमारा असत्य। हम मोबाइल के जरिये असत्य के प्रतीक हो गये हैं। हर पल झूठ, हर पल धोखा और न जाने क्या क्या। ऐसे में मेरे मोहल्ले का रावण कुछ फीट और ऊंचा हो जाए तो हमें एतराज नहीं करना चाहिए और न ही इतराना चाहिए कि हमने रावण का कद और ऊंचा का पाठ तो जरूर पढ़ाते हैं लेकिन व्यवहार में सत्य को पराजित करने में कभी पीछे नहीं रहते। कर दिया। एतराज इसलिये नहीं होना चाहिए कि असत्य के इस प्रतीक ने हमसे ऊंचा होने की हिमाकत नहीं की है और इतराना इस बात पर नहीं चाहिए कि हमने असत्य के इस प्रतीक को इतना ऊंचा कर दिया। सच तो यह है कि हमें विजयादशमी मनाने का कोई नैतिक हक है ही नहीं क्योंकि हम अपनी पीढ़ी को असत्य पर सत्य की जीत का पाठ तो जरूर पढ़ाते हैं लेकिन व्यवहार में सत्य को पराजित करने में कभी पीछे नहीं रहते। परम्परागत विजयादषमी का पर्व मनाने की तैयारी में पूरा समाज जुट गया है। हर साल