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अगस्त 3, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

vivad

स्त्री के लिये कानून नहीं, मन साफ करें -मनोज कुमार केन्द्र सरकार के रवैये पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार की खबरें अभी धुंधली भी नहीं हुई थी कि एक और महाशय ने महिलाओं के प्रति अभद्र बयान दे डाला। हालांकि दो दिन बाद उन्होंने अपने बयान के लिये सफाई दी और माफी भी मांग ली। क्या इन महाशय के माफी मांग लेेने से समूची महिला समाज आहत हुई हैं, उनके जख्म पर मरहम लग जाएगा? मुझे तो नहीं लगता कि ऐसा हो पायेगा। इस पूरे मामले से एक बात यह जरूर साफ हो गई है कि स्त्री की स्वाधीनता के लिये हम चाहे जितना कानून बनाये, बंदिशें लगायें, इसके पहले हमारा मन साफ करना होगा। मन के भीतर जो रचा बसा है, वह दूर नहीं हो सका तो कानून केवल कागज में कैद हो कर रह जाएंगे। स्त्री के सम्मान के खिलाफ यह पहली बार नहीं बोला गया है। बार बार और हर बार किसी न किसी बहाने स्त्री को टारगेट पर रखा जाता है। यदि स्त्री चरित्रहीन है तो उसे ऐसा बनाने वाले तो हमारा पुरूष समाज ही है जो अपनी स्वार्थ की पूर्ति के लिये भेड़िये की तरह तरह तरह की साजिश करता रहता है। राजनीति के मंचों पर पचास फीसदी आरक्षण देने से उनके अधिकारों की रक्षा तो हो जाएगी किन्