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सितंबर 9, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शुक्रिया, शुक्रिया हिन्दी सिनेमा

-मनोज कुमार हर बरस की तरह जब इस बरस भी चौदह सितम्बर को राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिये हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह और हिन्दी माह बनाने की तैयारी में जुटे हुये हैं, तब इस बार बात थोड़ा सा अलग अलग सा है। इस बार हिन्दी उत्सवी माह में हम भारतीय सिनेमा के सौ बरस पूरे कर लेने का जश्र मना रहे हैं। हिन्दी और हिन्दी सिनेमा का चोली-दामन का साथ है। राजनीतिक मंचों पर राष्ट्रभाषा हिन्दी को विस्तार देने और उसे आम आदमी की भाषा देने के लिये हल्ला बोला जाता है किन्तु सितम्बर के महीने तक ही लेकिन हिन्दी सिनेमा हिन्दी को आम आदमी की जुबान में न केवल बोलता है बल्कि उसे जीता भी है। हिन्दी सिनेमा हिन्दी ही क्यों, वह तो तमाम हिन्दुस्तानी भाषा और बोली के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये कार्य करता रहा है।  भारतीय सिनेमा के सौ बरस की इस यात्रा में भाषा और बोली का कोई प्रतिनिधि माध्यम बना हुआ है तो वह है हिन्दी सिनेमा। हिन्दी सिनेमा ने अपने आपको हर किस्म के बंधन से मुक्त रखा हुआ है। वह मानता है कि कहानी के पात्र जिस भाषा और शैली के होंगे, उसे वह फिल्माना पड़ेगा। यही कारण है कि हिन्दी सिनेमा बार बार और हर बार भारत का