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अप्रैल 27, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपने अपने आग्रह और सत्याग्रह

मनोज कुमार इसे गुदगुदाने वाला अनुभव ही कहा जा सकता है। महात्मा गांधी अचानक से अपने विरोधियों के लिये भी आदर्श बन गये हैं। हर कोई स्वयं को महात्मा का अनुगामी बता रहा है। गांधीजी को लेकर विलाप का दौर जारी है। उनके स्मृति चिन्हों की नीलामी को लेकर चिंता तो खूब जतायी जा रही है किन्तु विश्व के अनेक हिस्सों में सुरक्षित महात्मा गांधी के स्मृति चिन्हों को सहेजने की चिंता किसी ने नहीं की। जिन लोगों को गांधीजी के आग्रह और सत्याग्रह पर कभी यकिन नहीं था, वे सभी आग्रही और सत्याग्रही बन पड़े हैं। राजनीति से परे रहने वाले गांधीजी के नाम पर यह राजनीति एक अलग किस्म की है। सात्विक दिखकर, अहिंसा के मार्ग पर चलकर सत्ता तक पहुंचने का यह अभिनव अभिनय की एक मिसाल पेश की जा रही है। समाजसेवियों से लेकर राजनेताओं तक को अब गांधीजी का सहारा चाहिए। यह सुखद भी है कि आजादी के छह दशक से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद जब हम गांधीजी की जरूरत महसूस करते हैं तो लगता है कि गांधीजी सर्वकालिक रहे हैं और रहेंगे लेकिन उनके सामयिक हो जाने का अर्थ अलग अलग है। मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस. फिल्म में गांधीजी को जिस रूप में दि