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जनवरी 6, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Rajniti

राजनीति का नाटक या नाटक की राजनीति मनोज कुमार हर राजनेता के मन में एक ऊंचे पद पाने की हसरत रहती है। प्रदेश का नेता है तो मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब बुनता है और देश का नेता है तो सहज स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर उसकी नजर होती है। ख्वाब बुनने में कोई बुराई नहीं है लेकिन जब जब राजनेताओं से यह सवाल किया जाता है अधिकांश नेता मुकर जाते हैं और वर्तमान मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री को ही अपना नेता बताते थकते नहीं हैं। आज ही एक न्यूजचैनल पर छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल से प्रेस ने पूछ लिया कि क्या वे राज्य के भावी मुख्यमंत्री हैं, सवाल को दरकिनार कर गये और कांग्रेस पर भावी शब्द गढ़ने का आरोप लगा दिया लेकिन वे चेहरे की चमक को छिपा नहीं पाये। यह सच है कि भावी भविष्य के गर्त का सवाल है और अमर अग्रवाल को जरूर पता होगा कि आडवाणीजी भावी से वर्तमान नहीं बन पाये। कांग्रेस में भी कई भावी प्रधानमंत्री हुए लेकिन वे वर्तमान नहीं बन पाये। शायद इसलिये भी उन्हें यह भावी शब्द डराता होगा। पुराने अनुभवों से सीख लेना भी कोई कम बात नहीं होती है। शब्दों से खेलना भले ही राजनेताओं का शगल न