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नवंबर 16, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चुनाव में प्रेस और मीडिया का हस्तक्षेप

मनोज कुमार भारत के स्वाधीन होने के बाद 1952 में पहला आम चुनाव हुआ। इसके बाद संविधान के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में प्रत्येक पांच वर्ष बाद निर्धारित समय में चुनाव कराये जाने की व्यवस्था की गई। लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिये जिन संस्थाओं को संविधानवेत्ताओं ने अपनी स्वीकृति सहमति दी उनमें संसद एवं विधानसभाओं के साथ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में प्रेस को स्थान दिया गया। लोकतंत्र तथा समाज के प्रति प्रेस को जवाबदेह बनाया गया था जिसके पीछे दृष्टि पारदर्शिता की थी क्योंकि प्रेस ही एकमात्र ऐसी संस्था है जो राग-द्वेष से परे रह निरपेक्ष भाव से अपनी भूमिका का निर्वहन करती है। स्वाधीनता पूर्व के संघर्ष में भारतीय समाज ने प्रेस की भूमिका को देखा और समझा था अत: प्रेस पर विश्वास सहज हो जाता है।  भारत वर्ष में चुनाव प्रक्रिया आरंभ होने के साथ ही प्रेस का संजीदा हस्तक्षेप रहा है। चुनाव प्रक्रिया निर्बाध रूप से पूर्ण हो, मतदाताओं को सही और उचित जानकारी मिल सके, एक स्वच्छ सरकार का निर्माण हो तथा समय-समय पर प्रेस सरकार को उत्तरादायी बनाने के लिये उसे सजग करता रहे। प्रेस की इस भूमिका क