मनोज कुमार किसी व्यक्ति के नहीं रहने पर आमतौर पर महसूस किया जाता है कि वो होते तो यह होता, वो होते तो यह नहीं होता और यही खालीपन राजेन्द्र माथुर के जाने के बाद लग रहा है। यूं तो 8 अगस्त को राजेन्द्र माथुर का जन्म दिवस है किन्तु उनके नहीं रहने के छब्बीस बरस की रिक्तता आज भी हिंदी पत्रकारिता में शिद्दत से महसूस की जाती है। राजेन्द्र माथुर ने हिंदी पत्रकारिता को जिस ऊंचाई पर पहुंचाया, वह हौसला फिर देखने में नहीं आता है। ऐसा भी नहीं है कि उनके बाद हिंदी पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में किसी ने कमी रखी लेकिन हिंदी पत्रकारिता में एक संपादक की जो भूमिका उन्होंने गढ़ी, उसका सानी दूसरा कोई नहीं मिलता है। राजेन्द्र माथुर के हिस्से में यह कामयाबी इसलिए भी आती है कि वे अंग्रेजी के विद्वान थे और जिस काल-परिस्थिति में थे, आसानी से अंग्रेजी पत्रकारिता में अपना स्थान बना सकते थे लेकिन हिंदी के प्रति उनकी समर्पण भावना ने हिंदी पत्रकारिता को इस सदी का श्रेष्ठ संपादक दिया। इस दुनिया से फना हो जाने के 26 बरस बाद भी राजेन्द्र माथुर दीपक की तरह हिंदी पत्रकारिता की हर पीढ़ी को रोशनी देने का काम कर रहे हैं। ...
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