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जनवरी 2, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुद्दा

तो फिरोजाबाद की चूड़ियां ढूंढ़ते रह जाओगे मनोज कुमार आज से कोई 30-35 बरस पहले मेरी बड़ी भाभी पायल को महिलाओं के लिये बेड़ियां कहती थी। तब मुझे इस बात का अंदाज नहीं था कि उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच कर उनकी उस बात का अहसास अब होगा। आज जब महिलाओं को चूड़ियों से परे होते हुए, माथे से बिंदिया लगाने से बचते हुए और मांग में सिंदूर भरने से परहेज करते हुए देखता हुआ तो मेरी भाभी मुझे याद आ जाती हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो कल तक नारी के श्रृंगार की वस्तुएं थी, जिसमें स्त्रियां अपना सौभाग्य देखती थीं, आज उनके लिये बंधन हो गया है। उनके लुक को खराब करने लगा है। इस मुद्दे को विस्तार के साथ देखना होगा। यहां मैं जिस चूड़ी, बिंदी और सिंदूर की बात कर रहा हूं, उसका सीधा वास्ता तो स्त्रियों से है किन्तु इससे भी बड़ा वास्ता बाजार से है। फिरोजाबाद का नाम भारत के कोने कोने में जाना जाता है तो इसलिये कि वहां किसम किसम की चूड़ियां बनती हैं। षायद बिंदी और सिंदूर बनाने का काम भी होता होगा। इस बारे में मेरी जानकारी थोड़ी कम है। जब स्त्रियां श्रृंगार की इन महत्वपूर्ण वस्तुओं का त्याग करना आरंभ कर देंगी तो फिरोजाबाद के कारख