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जुलाई 23, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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उदासीन पाठक और मीडिया की चिंता मनोज कुमार आगे पाठ पीछे सपाट की बात हमें स्कूली दिनों में मास्टरजी कहा करते थे और घर पर पिता लेकिन यह बात मीडिया में भी लागू होगी, यह अब देखने को मिल रहा है। अयोध्या मामले की यह घटना बीस बरस पहले इतिहास के लिये जितनी महत्वपूर्ण थी, उतनी मीडिया के लिये और आज बीस बरस बाद भी यह घटना उतना ही अर्थ रखती है। मुझे पूरी तरह जानकारी तो नहीं है कि देश के किन और अखबारों ने इस खबर को कितना महत्व दिया किन्तु भोपाल से प्रकाशित होने वाले अखबारों में संभवतः भास्कर ने ही इसे प्रमुखता दी। अयोध्या पर इस रिपोर्ट के दो पक्ष हंैं पहला यह कि बीस बरस बाद इस घाव को कुरेदने की जरूरत क्यों पड़ी और दूसरा यह कि क्या हम इतिहास से सबक लेेने के लिये इन घटनाओं को याद नहीं करना चाहेंगे? मुझे लगता है कि दूसरी बात में ज्यादा दम है। इस बारे में थोड़ा विस्तार से बात करते हैं। बीस बरस पहले जिन दिग्गजों के कहे जाने पर पूरा देश आंदोलित हो उठा था, बीस बरस बाद वही देश शांत है। इन बीस बरसों में काफी कुछ बदल गया है। जीवनशैली बदली है, राजनीति के अर्थ बदले हैं, मीडिया का चेहरा बदला है और आम आदमी के सो