सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

नवंबर 26, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मौत का सामान

मनोज कुमार अभी अभी एक बुरी खबर मुझ तक पहुंची। मेरे दोस्त के पिताजी का देहांत हो गया। जितना दुख मेेरे दोस्त को था, उतना ही मुझे भी। सूचना पाते ही मैं घर पहुंचा तो खबर पाकर जितना दुखी था, उससे कहीं ज्यादा अब दुखी था। मैं और दो एक दोस्त ही वहां पहुंच पाये थे। अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के लिये हम लोग कुछ इंतजाम करते कि इसके पहले ही दोस्त ने खबर दे दी कि मोहल्ले के एक व्यक्ति अंतिम संस्कार के क्रियाकलाप के साथ ही सामनों की व्यवस्था भी कर देते हैं। सो उन्हें कह दिया गया है। थोड़े समय में ही वे सब इंतजाम कर देंगे। मैं चुप रहा और उसकी हां में हां मिलाता रहा। थोड़ी देर में पंडितजी के वहां पहुंचने के पहले वह व्यक्ति सब सामान लेकर भी आ गया जिसकी जरूरत होती है। कुछ समय बाद विधि विधान से क्रिया सम्पन्न होने की प्रक्रिया षुरू भी हो गयी। दोपहर तक अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी हो गया। सब अपने अपने घरों की तरफ चल पड़े। मैं भी उनमें भी एक था।  घर लौटते समय मन बोझिल था। दोस्त के पिता की मौत का दुख तो था ही, इससे कहीं ज्यादा दुख था रिष्तों के सिमटने का। मुझे याद है कि कभी मेेरे पिता और बाद म