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अक्तूबर 3, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महेन्द्र का 'गगन' से बुलावा

मनोज कुमार           सुबह सुबह फोन की घंटी घनघना उठी... मन में कुछ खयाल आया... स्वाभाविक था कि यह खयाल अच्छा तो होगा नहीं... कुछ अनमने मन से फोन उठाया तो उधर से संजय द्विवेदी की आवाज आयी... लगा कि रोज राम-राम करने फोन करते हैं, सो किया होगा लेकिन यह क्या.. अगले पल उसने पूछा कि  क्या आपको पता है.. महेन्द्र गगन नहीं रहे... एकाएक मुंह से निकल गया क्या बकवास कर रहे हो... दरअसल, मन ऐसी किसी खबर के लिए तैयार ही नहीं था.. फिर खुद को सम्हालते हुए कहा कि पता करता हूं, ऐसा होना तो नहीं चाहिए.. एक-दो दिन पहले ही मित्र शिवअनुराग पटेरिया के जाने की खबर से मन उबरा ही नहीं था कि यह दूसरा दुख.. भरे मन से अग्रज अरूण पटेल जी को फोन किया.. महेन्द्र भाई रिश्ते में उनके समधि थे.. उन्हें भी इस बात की कोई खबर नहीं थी.. वे चौंके और थोड़ी देर बाद उनका जवाब आया.. हां, मनोज जी, खबर सही है.. मुझे तकलीफ ना हो.. इसलिये मुझे नहीं बताया गया था...           महेन्द्र गगन के जाने का अर्थ था समाज के एक ऐसे गगन का रिक्तता से भर जाना जो पत्रकारिता, साहित्य और सेवा से परिपूर्ण हो.. महेन्द्र भाई मुझसे उम्र में कुछेक साल बड़े