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फ़रवरी 12, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Bharat Bhavan

झाडू, सूपा, चलनी, कुटेला और भारत भवन -मनोज कुमार        झाडू, सूपा, चलनी अब हमारे घरों से बाहर हो रहा है। झाडू की जगह मोप और सूपा और चलनी की जगह मिक्सर ग्राइंडर जैसी आधुनिक मशीनें आ गयी है। कुटेला भी अब विदाई के कगार पर है। कपड़े अब कुटेला की कुटाई से बच जाएंग क्योंकि वाशिंग मशीन के भीतर वह बेहद आहिस्ता आहिस्ता घूम घूम कर सफाई करा सकेगा। आपको भी लग रहा होगा कि लिखने वाला पगला गया है। कहां से झाडू, सूपा, चलनी और कुटेला की बातें करने लगा है। भला यह भी कोई चीज है जिस पर चर्चा की जाए?        आपकी तरह मुझे भी तकरीबन बीस बरस पहले ऐसा ही लगा था। तब जब मैं पहली दफा भारत भवन गया था। भारत भवन में एक हिस्सा इन चीजों के लिये सुरक्षित रख दिया गया है। पहली पहली दफा जब मैंने इन सामानों को देखा तो मुझे हंसी आ गयी। समझ में नहीं आया कि हमारे जीवन की रोजमर्रा की जरूरतों की इन चीजों को भला यहां क्यों सजा कर रखा गया है। मैं अपनी जगह गलत नहीं था क्योंकि मैं महानगर का रहने वाला नहीं था और न ही उस रईस परिवार से मेरा कोई वास्ता था जिनकी दुनिया हर घंटे में बदल जाया करती है। मैं तो कस्बानुमा शहर रायपुर से भोपा