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कविता से डरे अंग्रेजों ने पिता-पुत्र को शहीद कर दिया

आजादी के अमृत महोत्सव में संदर्भ मध्यप्रदेश मनोज कुमार हिन्दुस्तान में स्वाधीनता संग्राम का बिगुल बज चुका था. 1857 के विद्रोह की चिंगारी हर वर्ग और हर अंचल में सुलगने लगी थी. किसी को अपनी जान की फिक्र नहीं थी और जो फिक्र थी तो अपने वतन की. अंग्रेजी शासन हर स्तर पर विद्रोह को कुचलने के लिए बर्बर कार्यवाही कर रहा था. इतिहास के सुनहरे पन्नों पर जिन बलिदानियों के नाम अंकित हैं, उनमें राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह का नाम सबसे ऊपर है. पिता-पुत्र की कविता से भयभीत अंग्रेजों ने उन्हें तोप से उड़ा दिया था क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि यह विद्रोह का गीत है. पिता-पुत्र के बलिदान के साथ पूरा देश उनकी जयकारा करने लगा और देखते ही देखते अंग्रेजी शासन के खिलाफ बगावत हो गई. आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ऐसे वीर पुत्रों का स्मरण कर मध्यप्रदेश की माटी सदैव उनकी ऋणी रहेगी. स्वाधीनता संग्राम के इस महान प्रसंग के माध्यम से नयी पीढ़ी को स्वतंत्रता संग्राम के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराया जाना है. राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह, दोनों पिता-पुत्र अच्छे कवि होने के कारण अपनी ओजस्वी कविता के माध्यम से जनमानस