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जनवरी 1, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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किसने कह दिया कि समाज का विष्वास नहीं रहा मीडिया पर! -मनोज कुमार अरूण षौरी पत्रकार हैं या राजनेता, अब इसकी पहचान कर पाना बेहद कठिन सा होता जा रहा है। वे पत्रकार की जुबान बोल रहे हैं या राजनेता की, यह कह पाना भी संभव नहीं है। पिछले दिनों भोपाल में एक मीडिया सेमीनार में उन्होंने जो कुछ कहा, उसमें एक पत्रकार तो कहीं था ही, नहीं बल्कि एक राजनेता की भड़ास दिख रही थी। पता नहीं उन्हें क्या हो गया था, वे भी औरों की तरह मीडिया को कटघरे में खड़ा कर गये। वे अपनी रौ में कह गये कि मीडिया पर समाज विष्वास नहीं करता है। अरूण षौरी को कौन बताये कि जिस मीडिया पर आप सवाल उठा रहे हैं, वह मीडिया भी आपसे ही षुरू होता है। अरूण षौरी षायद यह भूल रहे हैं कि वे उसी समाज का हिस्सा हैं जहां उनकी बोफोर्स रिपोर्ट की गूंज दो दषक से ज्यादा समय से हो रही है। वे एक राजनेता के रूप में मीडिया की विष्वसनीयता पर सवाल उठा सकते हैं किन्तु एक पत्रकार के रूप् में उन्हें यह कहना षोभा नहीं देता है। मीडिया को अविष्वसनीय कहने का मतलब है स्वयं को अविष्वनीय बताना और हमारा मानना है कि अरूण षौरी अविष्वनीय नहीं हो सकते। पत्रकार अरूण षौरी