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अक्तूबर 16, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बचपन बचाने वाले शांतिदूत कैलाश सत्यार्थी को नोबल

-मनोज कुमार   बचपन बचाने की जिम्मेदारी उठाने का साहस दिखाने वाले कैलाश सत्यार्थी को नोबल दिये जाने का ऐलान किया जा चुका है। कैलाश सत्यार्थी ने बचपन बचाओ आंदोलन आरंभ किया तो उनके मन में एक टीस थी कि कैसे बचपन को बचाया जाये? कैसे बच्चों की मोहक मुस्कान उन्हें लौटायी जाये। काम कठिन है लेकिन सत्यार्थी जैसे लोगों के लिये असंभव भी नहीं और यही कारण है कि साढ़े तीन दशक से अधिक समय से वे बचपन बचाओ अभियान में जुटे हुये हैं। सत्यार्थी की चिंता केवल भारत के बचपन की नहीं है बल्कि उनकी चिंता इस दुनिया के तमाम बच्चों की है और यही कारण है कि सत्यार्थी के बताये और बनाये रास्ते पर पूरी दुनिया के लोग चल पड़े हैं। सत्यार्थी चले तो अकेेले थे लेकिन आज उनके साथ इतने लोग हैं कि गिनती कम पड़ जाये। सत्यार्थी को नोबल दिये जाने का ऐलान शायद इसलिये नहीं हुआ क्योंकि वे एक ऐसे मिशन पर हैं जो समाज को बचाने के लिये जरूरी है बल्कि लगता है कि यह नोबल उनके साहस के लिये दिया जा रहा है।  मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से चलकर देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंचने वाली रेललाईन के बीच स्थित है विदिशा रेल्वे स्टेशन। विदिशा