बुधवार, 3 मार्च 2010

खेल और मध्यप्रदेश

शिवेन्द्र के लिये हम क्यों नहीं बोलते?

-मनोज कुमार

भारतीय हॉकी टीम की कामयाबी से बौखलाये पाकिस्तान के दबाव में एक होनहार हॉकी खिलाड़ी को पहले तीन मैचों से और बाद में संशोधन कर दो मैचों के लिये निलंबित कर दिया गया। यह बेहद अफसोसजनक बात है। शिवेन्द्र का मनोबल तो गिरा ही है, साथ ही समूची भारतीय हॉकी टीम का मनोबल टूटा है। शिवेन्द्र की बात करें तो वे मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं और मध्यप्रदेश ने पिछले दिनों हॉकी को बदहाली से उबारने की सकरात्मक पहल की है, उसके बाद मध्यप्रदेश के खिलाड़ी के साथ ऐसा गैरवाजिब बर्ताव करना अफसोसजनक ही नहीं बल्कि निंदा के लायक है। बहरहाल, एक बात यह भी अफसोस करने लायक है वह यह कि मध्यप्रदेश के एक खिलाड़ी के साथ अनुचित कार्यवाही की गई लेकिन किसी ने इसके खिलाफ आवाज नहीं उठायी। पूर्व ओलिम्पियन असलम शेरखां ने जरूर इस मामले में आवाज बुलंद की लेकिन कोई और उनका साथ देने सामने नहीं आया। यह पहला या अकेला मामला नहीं है जब मध्यप्रदेश ने खामोशी ओढ़ ली है। इसके पहले भी मध्यप्रदेश अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ खामोश खड़ा रहा है। मध्यप्रदेश का विभाजन हुआ और छत्तीसगढ़ को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दे दिया गया, मध्यप्रदेश ने खामोशी के साथ इसे मंजूर कर लिया। अब बात बुंदेलखंड राज्य बनाने की है और इस बार भी मध्यप्रदेश का विभाजन होगा तो लगता नहीं कि विरोध के लिये आवाज उठेगी। आखिरकार हम इतने सहनशील क्यों हैं? क्यों हम अपने और अपने लोगों के लिये आवाज उठाने में भावनात्मक एकता का परिचय नहीं देते हैं? शिवेन्द्र के साथ हुए अन्याय के खिलाफ पुरजोर विरोध होना चाहिए ताकि हॉकी के खिलाड़ियों को इस बात का अहसास बना रहे कि उनके साथ पूरा देश है। मामला अकेले शिवेन्द्र का नहीं है बल्कि समूचे हॉकी के भविष्य का है। जैसे तैसे हॉकी टीम में जान आयी और आते ही उसे खत्म किये जाने की साजिश शुरू हो गयी। अभी विरोध नहीं किया गया तो शायद ही हॉकी अपने पुराने सुनहरे दिनों की ओर लौट सके। क्रिकेट के लिये मामूली बातों पर हल्ला मचाने, विरोध करने और अपनी नाराजगी जताने वालों से आग्रह है कि एक बार वे अपना विरोध इस फैसले के खिलाफ भी जता दें ताकि सबको लग सके कि अभी हॉकी की चिंता करने वाले हैं। उल्लेखनीय है कि वल्र्ड कप हॉकी में जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ चार गोल ठोंका तो पूरा देश तालियां बजा उठा। यह खुशी स्वाभाविक थी क्योंकि जिस तरह हम हॉकी की दुर्दशा देख रहे थे, उसमें ऐसी कामयाबी से हर भारतीय खुश होगा और होना चाहिए। भारतीयों, खासकर मध्यप्रदेश के लोगों के लिये यह खुशी थोड़ी ही देर की रही क्योंकि मध्यप्रदेश के प्रतिभावान खिलाड़ी शिवेन्द्र को पहले तीन मैच के लिये और बाद में दो मैच के लिये निलंबित कर दिया गया। शिवेन्द्र का निलंबन पूरी तरह से गैरवाजिब था क्योंकि फौरीतौर पर उनके निलंबन के लिये जो कारण गिनाये गये जो किसी भी हालत में जायज नहीं थे बल्कि यह कहा जाण् कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था तो ज्यादा वाजिब होगा। शिवेन्द्र के निलंबन से पूरी टीम का मनोबल ऐसा गिरा कि दूसरे दिन उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। आस्ट्रेलिया से भारत की हार खेल के कारण नहीं बल्कि तनाव के कारण माना जाना चाहिए। अगला मैच स्पेन से है और इसमें भी शिवेन्द्र बाहर रहेगा लेकिन वि·ाास किया जाना चाहिए कि अबकी भारत ऐसी गैरवाजिब कार्यवाही का जवाब देने के लिये अपनी जीत को बरकरार रखेगा। किसी समय हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले भोपाल में आज भले ही हॉकी खत्म हो रही है किन्तु मुख्यमंत्री के रूप में शिवराजसिंह चौहान की चिंता ने हॉकी में जान फूंकने का काम किया है। हम यह नहीं कहते कि वल्र्ड कप हॉकी में भारत की जीत के पीछे मध्यप्रदेश के प्रयास रहे हैं लेकिन भारतीय हॉकी टीम का मनोबल बढ़ाने में मध्यप्रदेश की कोशिश रही है, इस बात से इंकार करना मुश्किल है। जब भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ियों ने पैसों के अभाव में मैदान छोड़ने का ऐलान कर दिया था तब मध्यप्रदेश ने आगे बढ़कर मदद के लिये हाथ बढ़ाया था। हॉकी खिलाड़ियों की हौसलाअफजाई करना मध्यप्रदेश की नैतिक जवाबदारी थी क्योंकि यही एक प्रदेश है जिसकी पहचान हॉकी से थी और आज भी बनी हुई है।

जन्मदिन

लोक को तंत्र से जोड़ते शिवराजसिंह चौहान-

मनोज कुमार

शिवराजसिंह चौहान लगातार अपने दूसरे कार्यकाल में भी मुख्यमंत्री के रूप में अपने आपको प्रस्तुत नहीं कर पाये। वे एक आम आदमी के प्रतिनिधि के रूप में अपनी राजनीति आरंभ की और और आज भी आम आदमी के प्रतिनिधि के रूप में अपनी पहचान बनाये रखे हुए हैं। उनकी कोशिश जनता को सत्ता में भागीदार बनाने की रही है और वे अपनी इस कोशिश में कामयाब होते भी दिख रहे हैं। अपने पहले कार्यकाल में मुख्यमंत्री की चौपाल बिठाकर आमआदमी को सत्ता के करीब लाने का प्रयास किया तो जनदर्शन के माध्यम से सत्ता को आम आदमी के बीच ले जाने की कोशिश की। दूसरे कार्यकाल में मध्यप्रदेश बनाओ अभियान के माध्यम से जहां एक तरफ वे स्वर्णिम मध्यप्रदेश का सपना देख रहे हैं तो दूसरी तरफ वे आम आदमी से इस बात का आह्वान कर रहे हैं कि वे सत्ता के आश्रित रहने के बजाय सत्ता में भागीदार बनकर प्रदेश की तस्वीर और तकदीर बदल डालें। शिवराजसिंह चौहान मध्यप्रदेश की सत्ता सम्हालने वाले २८वें मुख्यमंत्री हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के एकमात्र नेता हैं जिन्होंने मध्यप्रदेश में दूसरी दफा और राज्य के इतिहास में दूसरे नेता जिन्होंने सत्ता की कमान सम्हाली। लगातार दो बार तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसान होना सरल नहीं है तो बहुत कठिन भी नहीं लेकिन अपने कार्यकाल को अविस्मरणीय बनाना जरूर मुश्किल भरा है। यूं तो मध्यप्रदेश के हर मुख्यमंत्री ने अपनी कार्यशैली से अलग पहचान बनायी लेकिन इनमें शिवराजसिंह चौहान की पहचान इतिहास में अलग तरह से होगी। उन्होंने अपने पहले और वर्तमान कार्यकाल में लगातार लोक को तंत्र से जोड़ने की पहल की है। उनकी इस पहल का ही परिणाम रहा कि भारतीय जनता पार्टी की छवि आम आदमी की पार्टी के रूप में बनी। आजादी के बाद और नये मध्यप्रदेश के निर्माण के बाद संभवत: मध्यप्रदेश एकमात्र राज्य होगा जहां आम आदमी के लिये मुख्यमंत्री निवास के दरवाजे खुल गये। प्रदेश के आदिवासी जिनके नाम पर विकास की वाहवाही तो लूट ली गयी लेकिन विकास कोसो दूर रहा था, आज वह मुख्यमंत्री के साथ बैठकर न केवल अपने दुख-सुख की बातें कर रहा है बल्कि उनके साथ भोजन भी करने का सुख पा रहा है। आदिवासी ही क्यों, हर वर्ग के लोग मुख्यमंत्री की चौपाल के बहाने मुख्यमंत्री के करीब आ गये। एक के बाद एक हर वर्ग के लिये उनके द्वारा किया मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित हो रहे मुख्यमंत्री की चौपाल लोगों के लिये यादगार बन गयी। चौपाल के जरिये मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का कई जमीनी हकीकतों से सामना हुआ। उनकी समझ में आ गया कि जनकल्याण की योजनाओं को अफसरशाही ने कागज में लपेट कर रख दिया है। अब उनका अगला पड़ाव था आम आदमी के बीच सत्ता को ले जाने का और वे इस कोशिश में भी कामयाब हुए। अफसरशाही बीते पचास सालों से जिस कार्यशैली की अभ्यस्त थी, उसे लगा कि यह भी मुख्यमंत्री की लोकलुभावन घोषणा होगी। सूरज के ढलते और अगली सुबह के होते होते बात खत्म हो जाएगी लेकिन उन्हें इस बात का कतई अहसास नहीं था कि बात निकलेगी तो दूरतलक जाएगी...। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान निकल पड़े गांव गांव, कस्बे-कस्बे। आनन-फानन में योजनाओं की समीक्षा कर डाली और कहीं गरजे-बरसे तो कहीं पीठ भी थपथपायी। अलसायी अफसरशाही दुरूस्त हो गयी और जिनको इसके बाद भी समझ नहीं आया, वे कार्यवाही के शिकार हो गये। इन कवायदों के बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह अपने बुने सपने स्वर्णिम मध्यप्रदेश को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ाया और आओ बनाये अपना मध्यप्रदेश की यात्रा पर निकल पड़े। अमरकंटक से आरंभ हुई यह यात्रा पूरे मध्यप्रदेश में चल पड़ी। मुख्यमंत्री स्वयं कहीं झाडू लगा कर तो कहीं योग की कक्षा लेकर अपने मध्यप्रदेश की भावना को बढ़ाने की कोशिश की। वे बार बार और हर बार यही बोलते रहे कि मध्यप्रदेश हमारा अपना प्रदेश है। जनता को सरकार पर आश्रित रहने के बजाय सरकार में भागीदार होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि शिवराजसिंह जो बात कह रहे हैं, उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों ने नहीं कही हो लेकिन वे जिस असरदार ढ़ंग से कह रहे हैं, वह उल्लेखनीय है। स्मरण रहे कि मध्यप्रदेश विभिन्न अंचलों को लेकर बनाया गया प्रदेश है। कदाचित इस बात से विमत नहीं होना चाहिए कि मध्यप्रदेश में भावनात्मक एकता का अभाव है। मालवा, विंध्य, महाकोशल, बुंदेलखंड और भोपाल की एक आवाज अब तक नहीं बन पायी है। संस्कृति और संस्कार हैं तो आंचलिक और स्वाभाविक है कि इसी संस्कृति और संस्कार को एकजाई आवाज बनाने के लिये मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान अपना मध्यप्रदेश की यात्रा पर निकल पड़े हैं। उनकी यह यात्रा का परिणाम तत्काल भले ही न मिले लेकिन आने वाले समय में यह असर दिखायेगी, इस बात का अहसास किया जाना चाहिए। लोकप्रियता के शिखर पर बैठे शिवराजसिंह को कभी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में दिखाने का यत्न किया जाता है तो कहीं भावी प्रधानमंत्री के रूप में भी उन्हें बताने से उनके समर्थक चूके नहीं लेकिन शिवराजसिंह इन सबसे परे रहकर खुद को एक किसान के बेटे के रूप में देखते रहे। उनकी कल्पना और चिंता गांव, ग्रामीण और किसान रहे हैं। वे उन्हें मुस्कराता हुआ देख स्वयं मुस्करा देते हैं। इस जन्मदिन के साथ उनके अगले अनेकानेक जन्मदिवस पर उनकी यह मुस्कान कायम रहे, यही मध्यप्रदेश की कामना है। उनके लिये शुभकामना है।

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