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कोरोना : डरने, डराने का नहीं, सम्हलने का वक्त है

 मनोज कुमार कोविड की तीसरी लहर ने दस्तक दे दी है। कल क्या होगा, किसी को खबर नहीं है लेकिन डर का साया दिन ब दिन अपना आकार बढ़ा रहा है। कोरोना की दूसरी लहर को याद करने के बाद रूह कांप जाती है और तीसरी लहर ने भी ऐसे ही कयामत ढाया तो जिंदगी कल्पना से बाहर होगी। पहली लहर को सभी वर्गों ने हल्के में लिया था और कोरोनो को लोग मजाक बता रहे थे। सामान्य खांसी-सर्दी की बीमारी बताकर उसे अनदेखा कर रहे थे लेकिन दूसरी लहर में जब जिंदगी के लाले पडऩे लगे तो समझ में आया कि सौ साल बाद महामारी किस कदर कहर ढाती है। हममें से अधिकांश को पता ही नहीं है कि सौ साल पहले आयी महामारी का प्रकोप कितना और कैसा था लेकिन जब हम खुद इस बार की महामारी का सामना कर रहे हैं तो समझ में आने लगा है कि महामारी होती क्या है? कोरोना की तीसरी लहर की अभी शुरूआत है और अपने आरंभिक लक्षणों में उसकी भयावहता का अंदाज होने लगा है। इस आहट को भांप कर हम सबको डरने की जरूरत नहीं है और ना ही डराने की जरूरत है बल्कि जरूरत है कि हम सब अपने अपने स्तर पर सावधानी बरतें क्योंकि सावधानी ही इस महामारी का इकलौता इलाज है। लापरवाही या अनदेखी के चलते पहले