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अप्रैल 7, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तकली की याद में...

-मनोज कुमार यादें हैं यादों का क्या! जाने कब और कैसे आ जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। जब सारी दुनिया सोशल साइट्स की दीवानी हो रही हैं तब मुझे बापू की तकली का अनायस स्मरण हो आया। आपको भी तकली की याद हो? आपने भी अपने स्कूली समय में पोनी से तकली के माध्यम से सूत कातना सीखा होगा। मैंने तो ऐसा खूब किया है। तकली की याद दरअसल अनायस नहीं आयी बल्कि बच्चों को संस्कार देने की गरज से तकली को याद करना पड़ा। जैसे गांधी व्यक्ति नहीं एक विचार हैं, वैसा ही उनकी तकली एक उपक्रम नहीं बल्कि विचार है जो न केवल मन को एकाग्र करती है बल्कि यह विशवास भी दिलाती है कि भारत की जमीन यहीं से शुरू होती है और आगे चलती जाती है। ग्लोबल विष्व का जो सपना दुुनिया देख रही है, उसमें भारत का गांव कहीं नहीं दिखता है। गांधी जी की बातें खूब हो रही है, पर गांधी विचार पर केवल फैषन के रूप में बात हो रही है। मेरा मन तब आहत हो जाता है जब मेरे आसपास की नयी पीढ़ी का संबोधन गांधीजी को लेकर लगभग अभद्र होता है। उनकी यह अभद्रता सोची-समझी नहीं है बल्कि संस्कारगत अभाव के कारण पनपी हुई है। नयी पीढ़ी के व्यवहार को जांचने पर पाया कि उनमें विचार