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संदेश

फ़रवरी 4, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपेक्षा और अनुभव

-मनोज कुमार इ न दिनों मोबाइल पर आने वाले संदेश को गौर से पढ़ा जाये तो उनमें दर्शन का भाव होता है. गौर फरमायेंगे. एक संदेश आया कि आपकी सुबह अपेक्षा के साथ होती है और शाम एक नये अनुभव के साथ. बड़ा अच्छा लगा और इस दर्शन संदेश को सोचते हुये अखबार के पन्ने पलटने लगा तो वाकई यह संदेश मुझे व्यवहारिक लगा. मेरा मध्यप्रदेश देश के दूसरे राज्यों की तरह चुनावी बुखार से तप रहा है. दिसम्बर 13 में पहले विधानसभा चुनाव, फिर लोकसभा के चुनाव और इसके बाद स्थानीय निकाय एवं पंचायतों के चुनाव. इस चुनाव में किसकी जीत हुई, कौन जीतता है और इसके क्या परिणाम होंगे, इसकी जवाबदारी राजनीतिक प्रेक्षकों के भरोसे छोड़ देते हैं. एक पत्रकार की नजर से जब मैंने इन चुनाव को देखना शुरू किया तो दंग रह गया कि यह चुनाव परम्परागत नहीं हैं. समय के साथ सोच बदलती दिख रही है और उस वर्ग में बदलती दिख रही है जिनके हाथों में न केवल घर की कमान होती है बल्कि अब वे सत्ता की भागीदार भी होने चली हैं. मध्यप्रदेश में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित कर दी गई हैं, इस लिहाज से भी उनकी भागीदारी बढ़ती दिख रही है. यह शुभ संकेत है लेकिन इससे भी ब