दहशत की दीवार पर कामयाबी का ककहरा
-मनोज कुमार
हिंसा पर अहिंसा की विजय का उदाहरण देखना है तो आपको छत्तीसगढ़ आना होगा। उस छत्तीसगढ़ में जो नक्सली हिंसा की दमक से थर्रा रहा है। उस छत्तीसगढ़ में जिसकी पर्याय बनता जा रहा है नक्सली हिंसा। देशभर में चिंता का विषय बन चुके छत्तीसगढ़ का एक और चेहरा है जो दहशत की दीवार पर कामयाबी का ककहरा लिख रहा है। यही है वह असली छत्तीसगढ़ जिसे किसी का खौफ नहीं। वह चुनौतियों को विकास का रास्ता मानता है और चुनौतियों से जूझते हुए कामयाबी की कहानी लिखता है। इस बात को पहले भी कई बार साबित किया जा चुका है और एक बार फिर बस्तर संभाग के दर्जनों बच्चों ने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास कर जता दिया है कि उनके हौसले बुलंद हैं। वे एक नये छत्तीसगढ़ रच रहे हैं और आने वाला समय विकसित छत्तीसगढ़ का होगा। जिन बच्चों ने इंजीनियरिंग की परीक्षा में कामयाबी दर्ज की है, वे शहरों में रहने वाले उन परिवारों से नहीं हैं जो नक्सली हिंसा की खबर पढ़कर सहम जाते हैं बल्कि इनमें से अधिकांश वे बच्चे हैं जिनके परिवारों को रोज रोज सहमना पड़ता है। कल की सुबह देख पाएंगे, इसका भरोसा भले ही न हो लेकिन अपने बच्चों पर उनका भरोसा है कि वे एक दिन नई सुबह के साक्षी होंगे। अपने माता-पिता के भरोसे को कायम रखकर कामयाबी की कहानी गढ़ने वालों को पूरा देश सलाम कर रहा है।
नक्सली हिंसा से सर्वाधिक पीड़ित एवं प्रभावित छत्तीसगढ़ राज्य का बस्तर संभाग है। राज्य सरकार माओवादियों से अपने स्तर पर निपट सुलझ रही है किन्तु सरकार की चिंता का विषय था उन बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना जिन पर हिंसक घटनाओं का न केवल बुरा प्रभाव पड़ रहा है बल्कि उनकी शिक्षा भी बाधित हो रही है। अनेक स्तर पर इन विद्यार्थियों के लिये शिक्षा का इंतजाम किया गया। आवासीय विद्यालयों में इन विद्यार्थियों को प्रवेश दिलाकर उन्हें इस बात का भरोसा दिलाया गया कि उनकी शिक्षा अब बाधित नहीं होगी। सरकार ने इन विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिये कुछ और नई योजनाओं का संचालन शुरू किया। इन्हीं में एक योजना था छू लो आसमान। योजना के नाम को इन विद्यार्थियों ने सच कर दिखाया और आसमानी सफलता हासिल कर जता दिया कि हिंसा का जवाब अहिंसा हो सकता है।
वनवासी विद्यार्थियों की यह कामयाबी किसी किस्से कहानी से कम नहीं है लेकिन यह किस्सा कहानी नहीं बल्कि हकीकत है। एक ऐसी हकीकत जहां बेघर, अनाथ और हिंसा के शिकार होने के बाद भी साहस नहीं छोड़ा। अपनी प्रतिभा का लोहा तो मनवाया ही, अपने आत्मवि·ाास का परिचय भी दिया। ये सफल विद्यार्थियों ने अपना भविष्य तो गढ़ा ही, ऐसे हजारों और विद्यार्थियों के लिये वे मिसाल बन गये हैं। कविता मंडावी ने अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में देश में ७८वां रैंक हासिल किया है। कविता उन वनवासी बच्चों में हैं जिनका परिवार माओवादी हिंसा में उजड़ गया। कविता की तरह ही कामयाबी गढ़ने वाली सुखमती, कवासी जोगी, भवानी गहलोत व स्वाती महापात्रा हैं। इन चारों विद्यार्थियों को देशभर के परीक्षा परिणाम में क्रमश: ८१८, १२०५, १०३२ व १६२६वां स्थान मिला है। समूचा परीक्षा परिणाम चौंकाने वाला है। गौर करेंगे तो पाएंगे कि इस परीक्षा में अनुसूचित जाति के १२८ विद्यार्थियों ने सफलता अर्जित की तो जनजातीय समाज के २० विद्यार्थी जबकि सामान्य वर्ग के एक विद्यार्थी को ही कामयाबी मिल सकी। छत्तीसगढ़ में टॉप करने वाले सौ विद्यार्थियों में माओवादी इलाकों से ११ विद्यार्थी हैं। जिलेवार आंकड़ें भी चौंकाने वाले हैं जिसमें बस्तर से ३०, सरगुजा से ३१, राजनांदगांव से ३८, कांकेर से २१, दंतेवाड़ा से १४, नारायणपुर से ७, बीजापुर से ५, जशपुर से २ तथा कोरिया से ०१ विद्यार्थी ने सफलता अर्जित की है।
इसे महज परीक्षा परिणाम की तरह नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि इसे हिंसा पर अहिंसा की जीत की तरह देखा जाना चाहिए। माओवादी हिंसा को लेकर जो दहशत का माहौल है, उस पर यह सफलता के कई अर्थ हैं। यह शिक्षा की तरफ राज्य सरकार के प्रयासों की सफलता का पैमाना है तो उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति की जीत भी है। सरकार ने शिक्षा के प्रति अपनी बुनियादी जवाबदारी को समय पर समझ कर न केवल अनेक पीढ़ियों को दिशा भटकने से बचा लिया बल्कि एक ऐसी दुनिया रचने की सामथ्र्य उन बच्चों में पैदा कर दी जिनके मन में कभी निराशा रही होगी।
वनवासी विद्यार्थियों में यह साहस और जज्बा सरकार के अथक प्रयासों से आया है, इस बात से इंकार करना मुश्किल है। मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ग्राम सुराज अभियान के तहत ऐसे इलाकों में गये जहां जाना तो दूर कल्पना करने से भी रोंगटे खड़े हो जाते थे। मुख्यमंत्री के इस साहस ने हजारों परिवारों के मन से डर को निकाल दिया। माओवादियों के हौसले शायद इन्हीं कारणों से आने वाले दिनों में पस्त हों। गांधीजी के बताये अहिंसा के रास्ते पर चलता छत्तीसगढ़ एक नयी सुबह की प्रतीक्षा कर रहा है जब छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में धमाके नहीं, दहशत नहीं, ढोल की थाप पर मोर मदमस्त होकर नाचेगा और कोयल कूकेगी। वनवासी विद्यार्थियों की इस सफलता ने संभावना को विस्तार दिया है, विकल्प दिया है एक नये छत्तीसगढ़ के निर्माण का।