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मार्च 11, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भीड़ में अकेले पुष्पेंद्र

मनोज कुमार कोई कहे पीपी सर, कोई कहे बाबा और जाने कितनों के लिए थे पीपी. एक व्यक्ति, अनेक संबोधन और सभी संबोधनों में प्यार और विश्वास. विद्यार्थियों के लिए वे संजीवनी थे तो मीडिया के वरिष्ठ और कनिष्ठ के लिए चलता-फिरता पीआर स्कूल. पहली बार जब उनसे 25 बरस पहले पहली बार पुष्पेन्द्रपाल सिंह उर्फ पीपी सिंह से मुलाकात हुई तो उनकी मेज पर कागज का ढेर था. यह सिलसिला मध्यप्रदेश माध्यम में आने के बाद भी बना रहा. अफसरों की तरह कभी मेज पर ना तो माखनलाल में बैठे और ना ही माध्यम में. हमेशा कागज के ढेर से घिरे रहे। बेतरतीब कागज के बीच रोज कोई ना कोई इस उम्मीद में अपना लिखा, छपा उन्हें देने आ जाता कि वे एक नजर देख लेंगे तो उनके काम को मुहर लग जाएगी. यह विश्वास एक रात में उन्होंने अर्जित नहीं किया था. इसके लिए उन्होंने खुद को सौंप दिया था समाज के हाथों में. आखिरी धडक़न तक पीपी शायद एकदम तन्हा रहे। कहने को तो उनके शार्गिदों और चाहने वालों की लम्बी फेहरिस्त थी लेकिन वे भीतर से एकदम अकेले थे। तिस पर मिजाज यह कि कभी अपने दर्द को चेहरे पर नहीं आने दिया. ऐसे बहुतेरे लोग थे जो अपने बच्चों के भविष्य के लिए, कही