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दिसंबर 28, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरा पसंदीदा रंग तो आज भी काला है...

मनोज कुमार      तुम खेलो रंगों से, रंग बदलना तुम्हारी आदत में है, मेरा पसंदीदा रंग तो आज भी काला है और काले रंग में समा जाना तुम्हारी फितरत में नहीं क्योंकि तुम रंग बदलने में माहिर हो. साल 2022 मीडिया के ऐसे ही किस्से कहानियों का साल रहा है. सबकी उम्मीदें रही कि मीडिया निरपेक्ष रहे लेकिन यह उम्मीद दूसरे से रही है. कोई खुद निरपेक्ष नहीं बन पाया. मीडिया निरपेक्ष हो भी तो कैसे? किसी एक के पक्ष में लिखना होगा और जब आप किसी के पक्ष में लिखेंगे तो स्वत: आप दूसरे के टारगेट पर होंगे. गोदी मीडिया एक शब्द गढ़ा गया लेकिन कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि गोदी मीडिया क्या है? आज जो सत्ता में है, गोदी मीडिया उसकी, कल जो सत्ता में आएगा, गोदी मीडिया उसकी लेकिन पत्रकारिता इन सबसे परे है. पत्रकारिता समाज की है. मुश्किल यह है कि जिस पुण्य कार्य से हमारी पहचान है, हमारा जीवन चलता है, उसे ही हम गरिया रहे हैं. साल 2022 ऐसे ही चरित्र के कारण गिना जाएगा. मीडिया का मतलब अब जो समझा गया या समझा जा रहा है, वह सोशल मीडिया है. इसके बाद टेलीविजन का क्रम आता है और सबसे आखिर में प्रिंट का. सोशल मीडिया कितना बेहाल है