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अगस्त 27, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नीयत का सवाल

मनोज कुमार आमतौर पर मेरे और पत्नी के बीच खबरों को लेकर कोई चर्चा नहीं होती है लेकिन बच्चों से जुड़ी खबरों पर बातचीत हो ही जाती है. कल भी ऐसा ही हुआ. केन्द्र सरकार द्वारा जघन्य अपराध करने वाले 16 साल के नाबालिग बच्चों को वयस्क अपराधियों की तरह मुकदमा चलाये जाने के फैसले पर हम दोनों में चर्चा होने लगी. मन ही मन मैं इस तरह के फैसले का स्वागत कर रहा था लेकिन पत्नी के मन को टटोलना भी चाहता था कि आखिर उसकी राय इस बारे में क्या है? मैं कुछ पूछता, इसके पहले ही वह फट पड़ीं। ऐसे फैसले तो पहले ही हो जाना चाहिये था। इन मामलों में उम्र नहीं, नीयत देखी जाती है और जब नीयत बिगड़ जाये तो क्या बालिग और क्या नाबालिग? सजा के हकदार सभी होते हैं और सजा मिलना भी चाहिये. पत्नी के गुस्से को देखकर पहली बार शांति का अहसास हुआ. जैसा मैं सोच रहा था, वैसा वह भी सोचती हैं, यह बात तसल्ली देने वाली थी। यह सच है कि अपराध, अपराध होता है और वह नाबालिग है इसलिये बख्श दिया जाये, यह तर्क नहीं, कुतर्क है। बड़ा सवाल यह है कि अपराध करते समय उसने अपने उम्र से बड़े अपराध करने की सोच ली तो सजा भी उसे उसकी सोच की मिलेगी। नी