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जुलाई 16, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मीडिया नहीं, उद्योग की शिक्षा

मनोज कुमार       पत्रकारिता बीते जमाने की बात हो गई है, अब दौर मीडिया है इसलिए पत्रकारों के स्थान पर मीडिया कर्मियों का निर्माण किया जा रहा है. यूं भी मीडिया को उद्योग का दर्जा दिए जाने की मांग अर्से से चली आ रही है. कागज में कानूनन भले ही मीडिया को उद्योग का दर्जा नहीं दिया गया हो लेकिन व्यवहार में उसकी कार्यशैली एक उद्योग की भांति ही है. मीडिया पहले अपने लाभ को देखता है और इसे बचे शेष हिस्से में वह समाज का शुभ देखने की कोशिश करता है. इसमें मीडिया हाऊसों का दोष नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि कोई भी उद्योग शुभ की बात अपने लाभ प्राप्ति के बाद ही सोचता है और यह मीडिया उद्योग यही कर रहा है. इसी से जुड़ा प्रश्र है मीडिया शिक्षा का. मीडिया का चाल-चलन जब एक उद्योग के स्वरूप का है तो उसे काम करने वाले भी उसी नेचर के ही चाहिए होंगे, यह बात मान लेना चाहिए. मीडिया शिक्षा संस्थानों की संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ रही है तो इसके पीछे क्या कारण होंगे? इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है और यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि लगभग तीन दशक पहले जब मीडिया शिक्षा नहीं थी तो पत्रकार किस दुनिया से आते थे? इन सवाल