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जनवरी 26, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
निर्गुण पद्म -मनोज कुमार मध्यप्रदेश के प्रहलाद टिपणिया को इस वर्ष का पद्मश्री से सम्मानित किया जाना पद्मश्री निर्गुण है, इस बात को एक बार फिर स्थापित किया है। प्रहलाद कोई राजनैतिक शख्शियत नहीं है और न ही वह कोई पहुंच रखने वाले परिवार का वारिसदार। वह एक लोक गायक है जो बीते पच्चीस बरस से कबीर के शब्दों को अपनी आवाज देकर दुनिया में उजाला फैलाने में लगा हुआ है। प्रहलाद को यह सम्मान मिलना इस बात का संदेश है कि यह सम्मान आज भी निर्गुण बना हुआ है और आगे भी निर्गुण मन को मिलता रहेगा। अखबारों में, खासकर मध्यप्रदेश के अखबारों में प्रहलाद को पद्मश्री मिलने की खबर को प्रमुखता नहीं मिली है, जो मेरे लिये दुख का कारण हो सकता है। प्रशासनिक और राजनीतिक क्षेत्रों के लोगों को यह सम्मान मिलना कोई बड़ी बात नहीं है किन्तु एक लोकगायक का यह सम्मान अर्थात पद्मश्री का सम्मान है। मालवा की माटी का यह सपूत कबीर की तरह निर्गुण है। लोभ लालच से परे जब वह कबीर के पदों को गाता है तो सुनने वाले ठिठक जाते हैं। पच्चीस बरस से कबीर और प्रहलाद का जादू दुनिया पर चल रहा है। इस निर्गुणी गायक का सम्मान पहली दफा नहीं हुआ है बल्