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जून 7, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भोपाल

घाव को हरा कर गया अपनी हरियाली और झील के मशहूर भोपाल ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन इस पर्यावरण प्रेमी शहर को कोई जहरीली गैस निगल जाएगी लेकिन सच तो यही था। हुआ भी यही और यह होना कल की बात कर तरह लगती है जबकि कयामत के पच्चीस बरस गुजर चुके हैं। इन बरसों में कम से कम दो पीढ़ी जवान हो चुकी है। गंगा नदी में जाने कितना पानी बह चुका है। पच्चीस बरस में दुनिया में कितने परिवर्तन आ चुके हैं। सत्ताधीशों के नाम और चेहरे भी बदलते रहे हैं। इतने बदलाव के बाद भी कुछ नहीं बदला तो भोपाल के अवाम के चेहरे का दर्द। यह घाव इतना गहरा था कि इसे भरने में शायद और भी कई पच्चीस साल लग जाएं। जिस मां की कोख सूनी हो गयी, जिस दुल्हन ने अपना पति खो दिया, राखी के लिये भाई की कलाई ढूंढ़ती बहन का दर्द वही जान सकती है। इस दर्द की दवा किसी सरकार के पास, किसी हकीम के पास नहीं है बल्कि यह दर्द पूरे जीवन भर का है। कुछ लोग यह दर्द अपने साथ समेटे इस दुनिया से चले गये तो कुछ इस दर्द के साथ मर मर कर जी रहे हैं। यह दर्द उस बेरहम कंपनी ने दिया था जिसे यूनियन कार्बाइड के नाम से पुकारा जाता है। हजारों की संख्या में बेकसूर लोगों को