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30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष ये वक्त टेक्नालॉजी की पत्रकारिता का है मनोज कुमार एक समय था जब टेलीविजन नहीं था। इंटरनेट और सेटेलाईट चैनलों का नामोनिशाननहीं था। अखबार भी श्वेत श्याम हुआ करते थे। थोड़े से पेज जिसमें ज्यादतरअखबार आठ पन्नों का हुआ करता था। हर पेज की अपनी शान। खबरों की मारामारी।किसी संस्था या आयोजन की खबर को दो कॉलम की जगह मिल जाना बड़ी बात मानाजाता था। तस्वीरों का भी उतना जलवा नहीं था। अधिकतम तीन कॉलम की फोटो छपजाया करती थी और आठ पेज के अखबार में ऐसी बड़ी फोटो तब कुल जमा चार हुआकरती थी। एक पहले पन्ने पर, दो शहर की खबर में, एक प्रादेशिक पन्ने पर औरएक अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों में। यह वह दौर था जब पत्रकारिता कीटेक्नालॉजी काम किया करती थी। खबरों को सूंघ कर, खोज कर निकाला जाता था।एक एक खबर का प्रभाव होता था। एक्शन और रिएक्शन होता था। लोग सुबह सवेरेअखबार की प्रतीक्षा किया करते थे लेकिन बदलते समय में सबकुछ बदल गया है।अब उस बेसब्री के साथ आम आदमी अखबार का इंतजार नहीं करता है। सुबह छह बजेअखबार आये या आठ बजे। जीवन की जरूरी चीजों में अखबार भी शामिल है इसलियेप्रतिदिन एक अखबार मंगा