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जल संरक्षण और मानवाधिकार     -मनोज कुमार     जल ही जीवन है और जीवन की धुरी दायित्व एवं अधिकारों पर टिकी हुई है। प्रकृति का नियम है जीवन है तो मृत्यु निश्चित है। निराशा है तो आशा भी है अर्थात सब कुछ नकरात्मक नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हम भारतीयों में अधिकार पाने की भावना प्रबल हुई है। इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है किन्तु अधिकारों के साथ दायित्व के प्रति निराशा का भाव सवालिया निशान लगाता है। हम अपने अधिकारों के प्रति सर्तक और सजग हैं किन्तु दायित्व निभाने के समय हम इसकी अपेक्षा दूसरों से करते हैं। इन सब बातों का सीधा संबंध मानवाधिकारों से जुड़ा हुआ है।      इस समय मानव की बुनियादी जरूरतों में एक बड़ी जरूरत जल की है। जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जल पर हम अपना अधिकार जताने से कभी नहीं चूकते हैं किन्तु जल की बचत करने में हमारा रवैया लापरवाही का होता है जिससे हम दूसरे के अधिकारों का हनन करते हैं। जल हमारे लिये जितना जरूरी है उतना ही जरूरी इस पृथ्वी पर निवास करने वाले दूसरे मानव के लिये भी है। अनुभव यह बताता है कि हम अपनी जरूरत पूर्ति हो जाने के बाद दूसरों की जर