सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मीडिया में पहला काम


राजेन्द्र माथुर पर बनी पहली फिल्म का इंदौर में प्रदर्शन
अब प्रभाष जोशी, राहुल बारपुते, एसपी सिंह और शरद जोशी पर बनेगी फिल्में

इंदौर। हिन्दी के आज़ाद भारत के चुनिन्दा संपादकों पर अब वृतचित्रों की श्रंखला बनाई जाएगी. इस कड़ी में पहली फिल्म राजेंद्र माथुर पर बन चुकी है. इसके बाद अब प्रभाष जोशी, राहुल बारपुते, सुरेन्द्र प्रताप सिंह और शरद जोशी पर फ़िल्में अगले तीन साल में पूरी हो जाएँगी. वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने यह बीड़ा उठाया है। इन फिल्मों पर फिलहाल शोध कार्य शुरू हो चुका है। प्रिंट, रेडियो और टीवी-तीनो विधाओं में काम कर चुके राजेश बादल के मुताबिक राजेंद्र माथुर पर बनी फिल्म का पहला शो इंदौर में हाल ही में हुआ। इंदौर से ही राजेंद्र माथुर ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की थी। वे इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी रहे थे. इंदौर में उनके नाम पर बने राजेंद्र माथुर ऑडिटोरियम में इस फिल्म का प्रदर्शन हुआ. इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में पत्रकार, लेखक और विचारक उपस्थित थे। श्री बादल के मुताबिक इस फिल्म को बनाने में तीन साल लग गए। माथुरजी का निधन १९९१ में हुआ था और उस समय टीवी ने उद्योग की शक्ल देश में नहीं ली थी. इसलिए उनके वीडियो को जुटाने में काफी समय लगा। आधे घंटे की इस फिल्म में राजेंद्र माथुर के दुर्लभ वीडियो के अलावा ऊनके रेडियो साक्षात्कारों के हिस्से और ३६ साल में लिखे उनके चुनिन्दा लेखों के हिस्से शामिल किये गए हैं। इसके अलावा राजेंद्र माथुर की पत्रकारिता को समझने वाले और उनके करीब रहे लोगों से बातचीत भी इसमें दिखाई गयी हैं। राजेश बादल के मुताबिक यह फिल्म नए पत्रकारों के लिए बेहद उपयोगी तो है ही, उन लोगों के लिए भी काम की है, जिन्होंने न तो राजेंद्र माथुर को देखा है, न उनके साथ काम किया और न उनको पढ़ा है। श्री बादल ने बताया कि इस फिल्म के शो देश भर में हिंदी मीडिया से जुड़े लोगों के लिए किये जायेंगे. मीडिया संस्थानों और कॉलेजों में भी फिल्म दिखाई जायेगी, जहाँ पत्रकारिता पढाई जाती है. राजेंद्र माथुर पहले नई दुनिया इंदौर के प्रधान संपादक और फिर राष्ट्रीय दैनिक नवभारत टाइम्स के संपादक रहे। वैसे वे अंग्रेजी के प्रोफेसर थे लेकिन हिंदी पत्रकारिता में उनका योगदान अदभुत है। उनके लेखन के कई संकलन प्रकाशित हो चुके है। राजेश बादल ने बताया कि इस क्रम में अन्य पत्रकारों और संपादकों पर फिल्मों कि शूटिंग भी जल्द शुरू हो जाएगी। श्री बादल ने अपील की कि जिसके पास भी सुरेन्द्र प्रताप सिंह, प्रभाष जोशी, शरद जोशी और राहुल बारपुते के फोटो, वीडियो या अन्य दस्तावेज हों कृपया उन्हें प्रदान कर सहयोग करें। श्री बादल राजेंद्र माथुर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह के साथ करीब बारह साल तक साथ काम कर चुके हैं और पिछले ३४ साल से पत्रकारिता कर रहे हैं। कैसा रहा राजेंद्र माथुर का जीवन :- राजेन्द्र माथुर प्रखर पत्रकार और सहज इंसान थे. १९९१ में उनके निधन के बाद हिन्दी पत्रकारिता में बड़ी रिक्तता आई है। लेकिन उनके जीवन-मूल्यों और पत्रकारिता को आदर्श मानने वालों की संख्या भी बहुत है। वे आदर्श महापुरुषों की पूजा करवाने के बजाय ऊनके गुणों और विचारों को अपनाने के पक्षधर थे। उन्होंने विदेशी आक्रमण, अकाल, भूकम्प की परिस्थितियों में भी निराशा भरी टिप्पणियाँ नहीं लिखीं। ऐसे नाजुक अवसरों पर भी समाज में आत्मवि·ाास पैदा करने का प्रयोग उन्होंने सदा किया। अगस्त १९६३ में उन्होंने लिखा था-'हमारे राष्ट्रीय जीवन में दो बुराइयाँ घर कर गई हैं जिन्होंने हमें सदियों से एक जाहिल देश बना रखा है। पहली तो अकर्मण्यता, नीतिहीनता और संकल्पहीनता को जायज ठहराने की बुराई, दूसरी पाखंड की बीमारी, वचन और कर्म के बीच गहरी दरार की बुराई।' वे सभ्यता को अक्षुण्ण रखने के लिए जंगली जिंदादिली को जरूरी मानते थे। उनके लेखन में राष्ट्रवाद कूट-कूटकर भरा है, लेकिन भाषा, धर्म, क्षेत्र के आधार वाली कट्टरता कहीं नहीं मिलती। वास्तव में माथुर साहब समाज के हर व्यक्ति की गरिमा की रक्षा के पक्षधर थे। उनके लेखन में बेहद पैनापन था, लेकिन किसी तरह का पूर्वाग्रह और दुर्भावना का अंश कभी देखने को नहीं मिला। पं. नेहरू को आदर्श मानने के साथ वे स्वयं सच्चे अर्थों में 'डेमोक्रेट' संपादक थे। राजेन्द्र माथुरजी के ६० के दशक (१९६३ से १९६९) तक के लेखों का महत्व इक्कीसवीं शताब्दी में और बढ़ गया है। उन्होंने सदा ही जिम्मेदार पत्रकारिता पर बल दिया है। यही कारण है कि ऊनके लेखन में कभी जहर की बूँद नहीं दिखाई दी। वे ऋषि की तरह समाज और राजनीति का आकलन करते रहे।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़

-अनामिका कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे।  किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक्शे

शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक

  शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक                                       स्वाधीनता संग्राम और महात्मा गांधी पर केन्द्रीत है.                      गांधी की बड़ी यात्रा, आंदोलन एवं मध्यप्रदेश में                                          उनका हस्तक्षेप  केन्दि्रय विषय है.

टेक्नो फ्रेंडली संवाद से स्वच्छत

मनोज कुमार           देश के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में जब इंदौर का बार-बार जिक्र करते हैं तो मध्यप्रदेश को अपने आप पर गर्व होता है, मध्यप्रदेश के कई शहर, छोटे जिलों को भी स्वच्छ भारत मिशन के लिए केन्द्र सरकार सम्मानित कर रही है. साल 2022 में मध्यप्रदेश ने देश के सबसे स्वच्छ राज्य का सम्मान प्राप्त किया। स्वच्छता का तमगा एक बार मिल सकता है लेकिन बार-बार मिले और वह अपनी पहचान कायम रखे, इसके लिए सतत रूप से निगरानी और संवाद की जरूरत होती है. कल्पना कीजिए कि मंडला से झाबुआ तक फैले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठकर कैसे निगरानी की जा सकती है? कैसे उन स्थानों में कार्य कर रही नगरपालिका,  नगर परिषद और नगर निगमों से संवाद बनाया जा सकता है? एकबारगी देखें तो काम मुश्किल है लेकिन ठान लें तो सब आसान है. और यह कहने-सुनने की बात नहीं है बल्कि प्रतिदिन मुख्यालय भोपाल में बैठे आला-अधिकारी मंडला हो, नीमच हो या झाबुआ, छोटे शहर हों या बड़े नगर निगम, सब स्थानों का निरीक्षण कर रहे हैं और वहां कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों, सफाई मित्रों (मध्यप्रदेश में सफाई कर्मियों को अब सफाई मित्र कहा जाता है) के