संदर्भ ः मध्यप्रदेश में बेटी बचाओ अभियान
बेटियों के बैरी के खिलाफ शिवराजसिंह का संकल्प
-मनोज कुमार
स्त्री के तौर पर हमारे पास मां, बहन, बेटी, भाभी, मौसी, चाची, नानी, दादी और ऐसे ही अनगिनत रिश्तों का ताना बाना है। इन रिश्तों से हम हमेशा अपेक्षा करते रहे हैं किन्तु इनकी सुरक्षा की दिशा में शायद ही हम कभी गंभीर हो सके हैं। यही कारण है कि स्त्रियों की गिनती के आंकड़ें हमें भयभीत कर देते हैं। भयभीत कर देने वाले आंकड़ों के पीछे अनेक कारण गिनाये गये जिसमें सर्वोपरि बेटे की चाहत रही है। सदियों से स्त्री कुछ शापित सी रही है। समाज को हर स्त्री से एक बेटे की चाह रही है लेकिन उस बेटे की पत्नी कौन होगी, मां कौन कहलायेगी? रिश्तों का वह ताना बाना जिसकी हम ऊपर बात कर रहे हैं, किनसे बुना जाएगा? इसकी चिंता हममे से शायद बहुत लोगों ने नहीं की। प्रकृति का नियम है बराबरी का। दिन में सूरज के प्रकाश से दुनिया आलौकित होती है तो सांझ ढलते ही चंदा मामा प्रहरी बन कर खड़े हो जाते हैं। दोनों के लिये बराबरी का समय। विज्ञान भी बराबरी की बात करता है किन्तु कुछ निष्ठुर और निर्दयी लोगों ने प्रकृति और विज्ञान को भी चुनौती देने से पीछे नहीं हटे। सच तो यह है कि हमारी इसी हिमाकत की सजा हम पा रहे हैं और आने वाला समय कठिन है।
शुक्र कीजिये कि इस दिशा में हम सब जागने लगे हैं। यह जागरण अनायस नहीं है बल्कि हमारे डर ने हमें जागने के लिये मजबूर किया है। भारत के इतिहास में मध्यप्रदेश जो काम करने जा रहा है वह डर का नहीं, लोकप्रियता के लिये नहीं बल्कि सच्चे मन से स्त्री के लिये आदरभाव के साथ है। बेटी बचाओ अभियान के पीछे एकमात्र मकसद है बेटियों को बचाना। यह तय है कि आज बेटियों को बचाने के लिये समाज आगे नहीं आएगा तो कल उसके ही अस्तित्व पर संकट आ जाएगा। अस्तित्व को बचाने के लिये भी जरूरी है कि हम बेटियों को आसमान में उड़ने दें, उन्हें बढ़ने दें। बहुत पीछे न भी जाएं तो मध्यप्रदेश बेटियों के हक में हमेशा से आगे खड़ा रहा है।
मध्यप्रदेश में स्त्री साक्षरता का प्रतिशत कम है किन्तु जागरूकता का अभाव नहीं है। बालविवाह जैसे रूढ़िवादी परम्परा का नाश हो रहा है। साल-दर-साल आंकड़े गिर रहे हैं। यह इस बात का पुख्ता सबूत है कि हमारी महिलाएं जागरूक हैं और उनके प्रयासों से ही यह संभव होता दिख रहा है। फकत सात बरस में बेटियों के हक-हूकुक के लिये मध्यप्रदेश सरकार ने सारे दरवाजे खोल दिए हैं। गांव से लेकर शहर तक की सत्ता में महिलाओं को बराबरी का भागीदार बनाया गया है। पढ़ाई से लेकर रोजगार तक की हर जरूरतें पूरी की जा रही है। जिंदगी को सही मायने में जी रही हैं हमारे अपने प्रदेश की बेटियां।
मध्यप्रदेश संभवतः देश एकमात्र राज्य है जहां महिलाओं को पूरा सम्मान दिया जा रहा है बल्कि उन्हें हर स्तर पर आर्थिक सुरक्षा भी। उनके हक में लगभग एक दर्जन से अधिक प्रभावशाली और लोकप्रिय योजनाओं का संचालन हो रहा है। मध्यप्रदेश की लाडली लक्ष्मी योजना ने तो दूसरे राज्यों को भी हमकदम बना डाला है। बेटी पालने की जवाबदारी से बचते लोग अनेक बार आर्थिक कारणों से बेटी को मार डालते थे किन्तु सरकार की तरफ से मिलने वाली आर्थिक सुरक्षा उन्हें ऐसा करने से रोक रही है। स्कूल में पढ़ने वाली बिटिया को मुफ्त शिक्षा, किताबें, ड्रेस और भोजन का इंतजाम। ग्रामीण इलाकों की प्रतिभावान बेटियों को उच्च शिक्षा के लिये वजीफा। विवाह, प्रसव जैसी जरूरतों के लिये भी सरकार का खजाना खुला हुआ है। इतना सब हो जाने के बाद भी अभी बेटियों के लिये काफी कुछ करना है।
देश के दूसरे हिस्सों की तरह मध्यप्रदेश में भी बेटियां गिनती में पीछे हैं। साल-दर-साल उनकी तादाद कम होती जा रही है। मुख्यमंत्री के रूप में शिवराजसिंह चैहान का संकल्प है कि बेटियों को हर हाल में बचाया जाएगा। वे शायद देश के पहले मुख्यमंत्री होंगे जिन्होंने यह संकल्प लिया है। उनका संकल्प पूरा करने की जवाबदारी हर पिता, हर भाई, हर चाचा, हर मामा, नाना और दादा की है। हर स्तर पर तैयारी कर ली गयी है। कोशिश की गयी है कि बेटियों के बैरी को कोई मोहलत न दी जाए। घर से लेकर अस्पताल तक घेराबंदी की मुकम्मल योजना बनायी गयी है। खामी फिर भी हो सकती है। बेटियों के बैरी फिर भी बचने का रास्ता खोज सकते हैं किन्तु सरकार के साथ हमारी नैतिक एवं सामाजिक जवाबदारी होगी कि हम अपनी बेटियों के बैरी ह्नदय परिवर्तन करें और स्वयं भी इस पाप से बचें।
समाज की एक बड़ी जवाबदारी यह भी है कि वह बेटियों को मारने वाले छल- कपट के विज्ञापनों से परहेज करे। भ्रूण हत्या के लिये कानून है किन्तु भू्रण को पेट में न आने देने के लिये दवाओं का उपयोग भी नैतिक पाप है। छल भरे विज्ञापन कानून को दगा दे सकते हैं किन्तु एक नैतिक समाज इसके फेर में नहीं आएगा। इस पाप के गर्त में डूबने वालों को बचाने का मुहिम चलाना होगा। लाख हम पश्चिमी सभ्यता में रंग गये हों किन्तु अभी भी हम अपनी संस्कृति से विलग नहीं हुए हैं। यह बात विज्ञान के स्तर पर प्रमाणित हो चुकी है कि प्रकृति के साथ अन्याय करने वाली दवाओं से फौरीतौर पर व्यक्ति मनमानी कर सकता है किन्तु इसके दुष्परिणाम वे वह बच नहीं पायेगा। खासतौर पर जब हम स्त्री की बात करते हैं तो इन छलावा भरे विज्ञापनों को बेहद गंभीरता से लेना होगा क्यांेकि छलिया विज्ञापनों में बतायी गयी दवाएं स्त्री को कमजोर करती हैं। स्त्री कमजोर होगी तो परिवार कमजोर होगा। किसी कमजोर से आप कितनी उम्मीद रखते हैं। बेटी के प्रति आप के मन में मोह है तो आप किसी स्त्री को कमजोर नहीं होने देंगे और न ही मध्यप्रदेश में चलने वाले बेटी बचाओ अभियान को।
आखिर हम सब की भी जिम्मेदारी है बेटियां बचें, नई दुनिया रचें।
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