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मंच वाले अमरसिंह आज नेपथ्य में

मनोज कुमार

उत्तरप्रदेष के चौंकाने वाले चुनाव परिणाम में सब लोग उलझ गये हैं। राहुल गांधी की असफलता और भाजपा की नाकामयाबी इस समय चर्चा में है। समाजवादी पार्टी की बात हो रही है तो अखिलेषसिंह की। मुलायमसिंह भी थोड़े से किनारे कर दिये गये से लगते हैं लेकिन समाजवादी पार्टी के वे संस्थापक हैं तो उन्हें अनदेखा करना उतना न तो सहज है और न ही संभव। इन सबके बीच कोई गुमनाम हुआ है तो एक षख्स जिसका नाम है अमरसिंह। अमरसिंह कभी समाजवादी पार्टी के पर्याय हुआ करते थे। सपा, मुलायम और अमरसिंह के बिना उत्तरप्रदेष की राजनीति का तानाबाना ही नहीं बुना जाता था लेकिन इस चुनाव में अमरसिंह का कोई वजूद नहीं रहा। यहां तक कि चुनाव विष्लेषण में भी उनका कभी उल्लेख तक नहीं किया गया। राजनीति में आयाराम गयाराम तो खूब होते हैं लेकिन गुमनामी की यह मिसाल होगी।

बहुत ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी में मुलामयमसिंह के बाद अमरसिंह सबसे बड़े दावेदार हुआ करते थे। कहना न होगा कि वे स्वयंभू मुलायमसिंह के उत्तराधिकारी के रूप में भी देखे जाते थे। मुलायम और अमरसिंह में तकरार हुई और अमरसिंह सपा से बाहर कर दिये गये। अमरसिंह को तब इस बात का आभाष भी नहीं रहा होगा कि उनका वजूद सपा से है, सपा का उनसे नहीं लेकिन वे इस बात को मानने को तैयार नहीं थे। सच तो यही है कि समाजवादी पार्टी से बाहर होते ही वे मंच से नेपथ्य में चले गये। 2007 से 2012 के बीच के इन पांच साल में अमरंिसंह नामक का सपा का यह सिनेमाई चेहरा एकदम से विलुप्त हो गया। इस बार के उत्तरप्रदेश के चुनाव में अमरसिंह का नाम भी नहीं लिया गया। अमरसिंह के साथ इस बार उत्तरप्रदेश के चुनाव में फिल्मी सितारों का जमघट भी नहीं लगा। यह जमघट अमरसिंह लगाते थे। अमिताभ बच्चन उनके अनुज होते थे तो अनेक कलाकारों का उनसे व्यक्तिगत स्नेह था। अमरसिंह चुनाव परिदृश्य से इस तरह बाहर हो गये कि उनका कभी राजनीति से रिश्ता ही नहीं था। चुनाव में इस तरह बाहर हो जाना अमरसिंह को अखर रहा होगा।

व्यक्ति से बड़ा संगठन है, यह बात समय समय पर प्रमाणित होती रही है। सभी राजनीतिक दलों से अलग हुए या कर दिये गये लोगों का अनुभव यही रहा है। सपा से बाहर कर दिये गये अमरसिंह इसका ताजा उदाहरण हैं। एक समय कांग्रेस से बाहर हुए एनडी तिवारी, शरद पवार, संगमा को यह अनुभव हुआ था तो भाजपा में उमा भारती, कल्याण सिंह भी इसी अनुभव से गुजर चुके हैं। उमा भारती को एक अवसर मिल गया और पुरानी बातों को भुलाकर वे भाजपा में आ गयीं लेकिन जितने समय तक वे भाजपा से बाहर रहीं, उसकी तकलीफ वे ही बता सकती हैं। उत्तरप्रदेष मंे राजनीति के सिरमौर रहे कल्याणसिंह की हालत किसी से छिपी नहीं है। अपवादस्वरूप कांग्रेस से बाहर हुए षरद पवार एकमात्र ऐसे नेता निकले जिन्होंने स्वयं को स्थापित किया। कांग्रेस के बराबर तो वे कभी खड़े नहीं हो सकते थे किन्तु एक मराठा नेता के रूप में स्वयं को स्थापित कर दिखाया। आज उत्तरप्रदेष में अखिलेषसिंह की जयजयकार हो रही है। समाजवादी पार्टी की इस जीत का अर्थ तलाषा जा रहा है। एक कल्पना यह भी की जा सकती है कि आज अमरसिंह समाजवादी पार्टी में होते और उत्तरप्रदेष में समाजवादी पार्टी को यह जीत मिलती तो अमरसिंह किस तरह स्वयं को प्रचारित करते किन्तु समाजवादी पार्टी इस बात पर राहत महसूस कर सकती है कि अमरसिंह के नहीं रहने से उसे जो लाभ मिला, वह नहीं मिल पाता।

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