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सुकून की खबर

मनोज कुमार

कहते हैं नदी अपना रास्ता खुद बना लेती है और यह काम कर दिखाया फूलबासन ने। छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के एक अनाम से गांव की इस महिला की न तो कोई राजनैतिक रसूख है और न वह भारी थैली वाली। एक ठेठ देहाती औरत जो ब्याहे जाने के पहले भी फाकाकशी की जिंदगी बसर कर रही थी और ब्याहने के बाद भी। जैसे-तैसे सातवीं कक्षा तक अक्षर ज्ञान हासिल करने वाली फूलबासन को सरकार की स्वसहायता योजना ने राह दिखायी। जिला प्रशासन ने एक पहल की और फूलबासन ने इस पहल को अपने प्रयासों से हिमालय सा खड़ा कर दिया। दस लोगों का समूह बनाकर शासन की स्कीम से कदमताल करती हुई फूलबासन गांव की बहनों तक पहुंची तो देखते ही देखते एकला चलो अभियान कारवां में बदल गया था। इस कारवां में सौ-पचास नहीं बल्कि लाखों की तादात में बहनें शामिल थीं। इनके पास बचत किये हुए रुपयों की संख्या हजारों में नहीं बल्कि करोड़ों में थी। सूदखोरों को महिला शक्ति ने पानी पिला दिया और हर बहन के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।  एक गांव का सफर अब छत्तीसगढ़ राज्य की पहचान बन गया था। 

११ बरस पहले छत्तीसगढ़ स्वतंत्र राज्य बना और फकत इन्हीं ग्यारह बरसों में फूलबासन भी आत्मनिर्भर हो गयी। आर्थिक रूप से स्वतंत्र। फूलबासन की सफलता की कहानी ऐसी गूंजी कि सम्मान और पुरस्कार से वह लद गयी। राज्य सरकार ने अपने प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया तो और भी जगहों से फूलबासन सम्मानित हुयी। आखिरकार फूलबासन की कामयाबी की कहानी केन्द्र तक पहुंच गयी। फूलबासन की कोशिशें इतनी बड़ी थी कि पद्य सम्मान का हकदार उसे माना गया। इस बरस जिन लोगों को पद्य सम्मान से नवाजा गया उनमें फूलबासन भी है। फूलबासन के पास हुनर है, वैभव है, नाम है लेकिन वह अपने पुराने ढर्रे पर जीती है। आज भी जिस चरवाहे के साथ उसके जीवन की डोर बंधी थी, उसी परम्परा को वह आगे बढ़ाती है। 

उसे इस बात की कोई फिकर नहीं है कि वह पद्यश्री से सम्मानित है। फूलबासन की यही विनम्रता पद्य सम्मान के गौरव की रक्षा करती है। सम्मान व्यक्ति को जिम्मेदार बनाता है और यह दर्शन फूलबासन भले ही न समझती हो लेकिन भावनाओं को समझती है। वह हमेशा से हर सम्मान और हर कामयाबी का श्रेय अपनी साथी बहनों को देती है। फूलबासन की मेहनत और लगन का सम्मान कर उस मिथक को भी धराशायी कर दिया गया जो यह मानकर चलते हैं कि पद्य सम्मान तो जुगाड़ से मिलते हैं। फूलबासन से कोई पूछे कि उसका जुगाड़ क्या था तो शायद उसके पास यही जवाब होगा मेहनत, मेहनत और मेहनत। मेहनत से मिली कामयाबी और कामयाबी से मिले पद्य सम्मान से न केवल छत्तीसगढ़ का अपितु समूचा देश स्वयं को गौरवांवित महसूस कर रहा है।       

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