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उर्मिला बनी बदलाव की सबब


-मनोज कुमार
शादी का मंडप बना हुआ था. गीत-संगीत में सब मगन थे. उर्मिला भी दूसरी युवतियों की तरह सपने बुन रही थी. एक सुखी और आनंदमयी जिंदगी के लिये. कुछ ही घंटों बाद उर्मिला अपनी नयी जिंदगी की शुरूआत करने जाने वाली थी. इन शेष बचे घंटों ने उर्मिला की जिंदगी में तूफान ला खड़ा किया. जिस व्यक्ति के साथ पूरी जिंदगी बिताने के सपने बुन रही थी, उन सपनों से सेकंड में बाहर आकर उर्मिला ने शादी तोडऩे का ऐलान कर दिया. घर, परिवार, बराती, दुल्हा और मेहमान सब आवाक. उर्मिला ने इस ब्याह के लिये अपनी रजामंदी दी थी लेकिन उसे इस बात की खबर नहीं थी कि जिसे वह अपना जीवनसाथी बनाने जा रही है, वह नशे का आदी है. और यहां तक कि शादी के पवित्र मंडप में भी वह स्वयं को नशे से दूर नहीं कर पाया. उर्मिला को यह बात खल गयी और उसने शादी से इंकार कर दिया. उर्मिला के फैसले से सन्नाटा खिंच जाना स्वाभाविक था. कुछ समझाने बुझाने का दौर भी चला लेकिन उर्मिला अपने फैसले पर अडिग रही. लोगों को भी लगा कि उर्मिला का फैसला उचित है और वे उर्मिला के साथ खड़े हो गये. नशे में धुत्त दुल्हे को बैरंग वापस लौटना पड़ा. यह घटना है इसी साल 21 अप्रेल की. यह वही दिन था जब समूचा भारतीय समाज अक्षय तृतीया का उत्सव मना रहा होता है. इस साल का यह दिन इतिहास बन गया और उर्मिला एक ऐसी रोल मॉडल जिसके फैसले को नजीर मानकर युवतियों ने ऐसी शादी के खिलाफ स्वयं को खड़ा किया.
उर्मिला सोनवाने छत्तीसगढ़ राज्य के एक छोटे से कस्बानुमा नगर देवभोग की एक बहुत ही गरीब मध्यम परिवार की बेटी है. पिता ने अपनी जमीन बेचकर उर्मिला की शादी के लिये प्रबंध किया था. उर्मिला स्वयं राज्य शासन में एक  शासकीय कर्मचारी के तौर पर कार्य करती है. उर्मिला एक पिता की मजबूरी को समझती थी और वह अपने पिता के अरमानों को पूरा करना चाहती थी लेकिन वह अपनी जिंदगी को भी नरक नहीं बनने देना चाहती थी. अपने फैसले के बाद वह कहती है- कुछ खोकर भविष्य बचाया जा सकता है तो यह करना चाहिये. पिता की जमीन बिक गयी, यह सही है लेकिन मेरा भविष्य सुरक्षित हो गया. उर्मिला के इस फैसले से समाज का सन्नाटे में आ जाना कोई अनपेक्षित नहीं था लेकिन बदलाव की शुरूआत जो उर्मिला ने की है, उसकी गूंज देवभोग जैसे छोटे से हिस्से में ही नहीं बल्कि पूरे देश में होने लगी है. उर्मिला के इस साहसिक फैसले ने उन युवतियों को भी हौसला दिया है जो जानते और समझते हुये भी परिवार के दबाव में नशे का विरोध नहीं कर पाती थीं. आज वे भी ऐसे फैसले लेने के लिये आगे आ रही हैं. छत्तीसगढ़ के अनेक नगर और गांव में युवतियों ने अपना फैसला सुना दिया है कि शराबी दुल्हे से वे किसी भी कीमत पर ब्याह नहीं करेंगी.
छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी बाहुल्य राज्य है और शराब का नशा करना कभी इनकी जीवनशैली थी तो अब फैशन के रूप में यह जहर पूरे समाज को निगल रहा है. एक सच यह है तो दूसरा सच यह भी कि यह वही राज्य है जहां शराब के खिलाफ महिलाओं ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है. धुर आदिवासी जिला जशपुर में आज से तीन दशक पहले महिलाओं ने शराब के खिलाफ जो मोर्चा खोला था तो पुरूषों ने शराब से तौबा कर ली थी. इसी तरह अविभाजित मध्यप्रदेश में वर्तमान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित भानसोज में शराब के खिलाफ महिलाओं ने 364 दिनों की लम्बी लड़ाई लड़ी थी और सरकार को हार मानकर शराब दुकान का लायसेंस निरस्त करना पड़ा था. बाद में शराब के खिलाफ इस आंदोलन पर पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय में पीएचडी की गई. शराब के खिलाफ छत्तीसगढ़ में महिलाओं ने दशकों से मोर्चा खोल रखा है और उर्मिला इस आवाज को आगे बढ़ाते हुये रोल मॉडल बन गयी हैं.
उर्मिला सोनवाने के इस साहसिक फैसले ने पूरे भारतीय समाज की दशा और दिशा बदल दी है. उर्मिला ने तो नशेड़ी दुल्हे को ठुकराया तो मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में एक युवती ने सलीके से बात नहीं करने पर ही शादी से इंकार कर दिया. मुख्यमंत्री सामूहिक योजना में शादी करने पहुंची युवती ने देखा कि उसका होने वाला पति अपने दोस्तों के साथ सरेआम गाली-गलौच से बात कर रहा है. गंदे-गंदे शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है. युवती को अपने होने वाले पति का यह व्यवहार नागवार गुजरा. उसने सोचा कि आज शादी के मंडप में उसकी यह हालत है तो शादी के बाद वह उसके साथ भी ऐसी ही बदसलूकी करेगा. भविष्य की चिंता करते हुये युवती ने अपना रिश्ता तोड़ दिया. 
बदलते समय में बदलाव की यह बयार एक नये समाज के निर्माण का संकेत देती हैं. एक ऐसे समाज की जहां पुरूषों को अपनी मानसिकता बदलना होगी. सरकार और समाज को भी इस दिशा में उर्मिला, तुलेश्वरी और धनेश्वरी जैसी युवतियों के साथ खड़ा होकर नशे के खिलाफ संदेश देना होगा. बदलाव की यह बयार शुरू हो चुकी है।(

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