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राजनीति

शिवराजसिंह को कौन बनाना चाहता है भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष-
मनोज कुमार
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह क्या स्वयं होकर संगठन में जाना चाहते हैं? क्या शिवराजसिंह चौहान इतने वरिष्ठ हो गये हैं कि वे भाजपा का भार सम्हाल सकें? क्या भाजपा प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के पक्ष में हैं और इन सवालों का जवाब होगा ना में । ऐसे में कौन हैं जो शिवराजसिंह चौहान को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने पर तुले हुए हैं जबकि स्थिति यह बताती है कि भाजपा के मंच पर इस पद के लिये उनका नाम ही नहीं है। शिवराजसिंह चौहान को भारतीय जनता पार्टी में उठे बंवडर में उलझाने की भरसक कोशिश की जा रही है। उनका नाम भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिये लिये जाने की चर्चा को हवा दिया जा रहा है जबकि स्वयं शिवराजसिंह चौहान बार बार कह रहे हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री ही बने रहने दें। आने वाले २९ नवम्बर को मुख्यमंत्री के रूप में वे अपने कार्यकाल का चार वर्ष पूरा कर लेंगे। यह बात उनके विरोधियों को हजम नहीं हो रहा है। भाजपा जब भी सरकार में आयी है, बार बार और अनेक बार मुख्यमंत्री बदले गये हैं। इस बार भी आरंभिक तीन वर्षाें में तीन मुख्यमंत्री भाजपा ने राज्य को दिये और तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में जब शिवराजसिंह चौहान की ताजपोशी हुई तो यह माना जा रहा था कि साल और अधिक से अधिक दो साल में उनकी रवानगी हो जाएगी। यह कयास भी खोखला साबित हुआ और वे शानदार पांचवें वर्ष की ओर बढ़ रहे हैं और स्वाभाविक है कि ऐसे में विरोधी उनके खिलाफ सक्रिय हो जाएं। ऐसी स्थिति में शिवराजसिंह के खिलाफ एकमात्र हथियार बचा था कि उन्हें भाजपा में राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया जाए। शिवराजसिंह विरोधी यह भी जानते हैं कि फिलवक्त न तो शिवराजसिंह राष्ट्रीय नेता बनने के मन में हैं और न ही उनका अनुभव इतना है कि वे पार्टी की बागडोर सम्हाल लें लेकिन प्रचारित कर भाजपा के दिग्गजों तक यह संदेश पहुंचा दिया जाये कि शिवराजसिंह अतिमहत्वाकांक्षी हो गये हैं। ऐसे में शिवराजसिंह के प्रति सद्भावना रखने वाले नेताओं के मन में उनके प्रति सद्भावना कम होगी और शायद इसी उहापोह में उन्हें मुख्यमंत्री पद से भी हाथ धोना पड़े। शिवराजसिंह भी राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। उन्होंने अनेक स्थानों पर सार्वजनिक रूप से मीडिया में कहा कि वे मुख्यमंत्री हैं और मुख्यमंत्री ही बने रहना चाहते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिये वे काबिल नहीं हैं। शिवराजसिंह की मध्यप्रदेश में कामयाबी और भाजपा हाइकमान के सामने उनके बढ़ते कद को कम करने की यह उनके पार्टी के भीतर के लोगों की राजनीतिक चाल है। पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाने के कारण शिवराजसिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की भरसक कोशिश की गई लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। विरोधियों को विधानसभा उपचुनाव परिणामों का इंतजार था जिसमें वे यह कह सकें कि शिवराजसिंह का जादू खत्म हो गया है लेकिन यह चाल भी उल्टी पड़ गई और वे कांग्रेस की झोली से एक सीट झटक कर ले आये। उपचुनाव का विशेष प्रभाव नहीं होता है लेकिन शिवराजसिंह के लिये यह उपचुनाव जीतना एक संजीवनी की तरह ही था। अब वे दावे से कह सकते हैं कि अभी उनका जादू खत्म नहीं हुआ है। उल्लेखनीय है कि जब शिवराजसिंह का नाम मीडिया में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिये उछाला जा रहा था तब शिवराजसिंह चौहान मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में घूम घूमकर सरकार के कार्याें के परिणाम को जानने में व्यस्त थे। स्वाभाविक है कि जिस नेता का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिये हो, वह दिल्ली में रहने के बजाय भोपाल में हो तो इसे महज उनके विरोधियों की राजनीति चाल ही मानी जाएगी। यूं भी भाजपा हाइकमान ऐसा कोई रिस्क नहीं लेगी। शिवराजसिंह जनहित की विभिन्न योजनाओं को लेकर प्रदेश में भाजपा को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। उनकी छवि भी जनसामान्य में बेहतर है और ऐसी स्थिति में उन्हें बदलने का अर्थ होगा आमजन में सरकार को अलोकप्रिय बनाना। किसी उलटफेर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है लेकिन अभी वक्त शिवराजसिंह के साथ है। स्थानीय निकायों एवं पंचायतों के चुनाव परिणाम ही शिवराजसिंह सरकार की भावी राजनीति दिशा तय करने वाले होंगे और अभी इसके लिये कम से कम चार महीने तो इंतजार करना ही होगा।

टिप्पणियाँ

  1. manoj ji kya haal chal hai. kafi dino se aap se bat karana chahata tha, lekin aapko cell no miss ho gaya, yahan dekhakar accha laga.

    aapka cell no mujhe mere mail id par bejenge to baat ho payengi...
    pan_vya@yahoo.co.in
    pankaj vyas, ratlam

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