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करोड़पतिया गुमान

मनोज कुमार

ये लड़की गुमान से भरी हुई है। उसका गुमान हल्का नहीं है। करोड़ भर का गुमान है। करोड़पति बनाये जाने वाले अमिताभ बच्चन के कार्यक्रम में उसने एक करोड़ की राषि जीत ली है। कभी पिता की उपेक्षा से आहत आज की करोड़पतिया बेटी अपने पिता को उपेक्षा की नजर से देखती है। हिकारत भरी नजर से कहती है आपके घर लड़की हुई है। ये नजारा है उस टेलीविजन सीरियल का जिसे लोग अमिताभ बच्चन के कारण देखते हैं। अमिताभ की एक नयी सूरत इस सीरियल से बनी है। वह हर घर के सयाने बन गये हैं। लिहाजा उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसे चरित्र निर्माण की ओर प्रतिभागियों और दर्षकों के बीच नींव खींचेंगे जिससे एक नई दुनिया की रचना हो सके। ताजा तरीन बल्कि अभी गर्भ में पल रहे प्रोग्राम के इस एपिसोड का उपरोक्त विज्ञापन सामाजिक मर्यादा को तार तार कर देता है।

आज की करोड़पतिया बेटीके जन्म लेने पर उसके पिता को बेटी हो जाने का अफसोस रहा होगा। जब उसने आंखें खोली होगी तो उसे इस बात का इल्म तो नहीं हुआ होगा। होष सम्हालने के बाद पिता के अफसोस से वह वाकिफ हुई होगी, यह जरूर है। पिता के अफसोस का उसे भी अफसोस रहा होगा। यह स्वाभाविक है। बेटे और बेटी के बीच के इस फकत अंतर को वह समझ नहीं सकी है। यहां भी कोई गलत नहीं है। समाज में बदलाव की बयार चल पड़ी है। पूरा बदलाव की यह बयार ही है कि कल जिस लड़की ने उपेक्षा झेली, आज वह कौन बनेगा करोड़पति प्रोग्राम में हिस्सेदारी कर रही है। पिता ने कभी बेटी के रूप में उसका तिरस्कार किया होगा। दोमुंहेपन से ही सही, पाला तो होगा। आज की यह करोड़पतिया बेटी किस तरह पली और इस मुकाम तक किस तरह पहुंची, मुझे नहीं मालूम लेकिन इतना समझ में आता है कि पिता की वह लाड़ली न सही, बेटी तो थी ही। पाला भी होगा, पढ़ाया भी होगा और इसी कारण आज वह इस प्रोग्राम का हिस्सा बन सकी है।

पिता के प्रति रोष स्वभाविक है किन्तु सार्वजनिक रूप से पिता को प्रताड़ित करने की इजाजत समाज नहीं देता है। दरअसल हमारे पिता ने जो गलती की है, उसे हम सुधार नहीं सकते किन्तु हम अपनी बेटियों के साथ ऐसा नहीं करें, यह सीख ही बदलाव का संकेत है। इस करोड़पतिया बेटी को एक करोड़ जीत जाने का गुमान दिखता है, जबकि यह जीत उसमंे विनम्रता का भाव ला सकती थी। वह और लोगों के लिये उदाहरण बन सकती थी कि पिता की बेरूखी के बाद भी उसने कामयाबी पायी है। भारतीय समाज हमेषा से बेटियों के साथ होने वाले सौतेले व्यवहार से आहत रहा है। पुरातन परम्पराओं और रूढ़ियों पर चोट करते हुए नयी परम्परा षिक्षा के साथ लिखी जा रही है। यह उम्मीद, यह आस समाज में जागी है कि अब बेटियां अपने पैरों पर खड़ा हो सकेंगी। बेटे और बेटियों का अंतर मिट जाएगा। समाज के माथे पर लगा कलंक मिटाना जरूरी है।

मैं स्वयं भी एक बेटी का पिता हूं। उसे लाड़ली कहता हूं और उसी स्नेह के साथ उसका पालन-पोषण कर रहा हूं तो यह मेरी जवाबदारी है। मेरे बड़े और छोटे भाई की भी एक एक बेटी है। हमारा पूरा परिवार इन पर गर्व करता है। हमारी कोषिष है कि हम जो स्नेह अपनी बेटियों को दे रहे हैं, वह दायित्व नहीं बल्कि परम्परा बने। पिता अपना दायित्व निभाये और बेटियां विनम्रता के साथ अपना रिष्ता। आज करोड़पतिया बेटी के गुमान ने जाने कितनों को आहत किया होगा। यकिन करना होगा कि बदलाव की बयार के लिये गुस्सा नहीं विनम्रता चाहिए क्योंकि विनम्रता भारतीय समाज की परम्परा है।

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