-मनोज कुमार
हाल ही के उप-चुनाव के परिणाम से जहां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की सांसें लौट आयी है, वहीं भाजपा में मंथन का दौर शुरू हो गया है. सौ दिन में ही ऐसे परिणाम की अपेक्षा किसी को नहीं थी लेकिन जो हुआ, वह सच है और इससे मुकरना बचकाना होगा. अब सवाल यह है कि उपचुनाव का यह परिणाम क्यों हुआ? क्या इस उपचुनाव में भाजपा अकेले मैदान में थी और उनका सबसे प्रभावी और दमदार चेहरा नरेन्द्र मोदी गायब थे या फिर अमित शाह के भाजपा की कमान सम्हालने के बाद यह परिणाम आया है? कुछ भी हो सकता है लेकिन एक बात तय है कि इस परिणाम ने यह बता दिया कि सौ दिन पहले जिस नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा, माफ करना नरेन्द्र मोदी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी, वह सौ दिन में काफूर होते नजर आ रही है। इस उपचुनाव में भाजपा ने कहीं नारा नहीं दिया इस बार मोदी सरकार. सरकार तो बन गयी थी, विधायक या सांसद के लिये भाजपा ने नहीं कहा कि मोदी की सफलता के कारण इन्हें जीताओ। इन परिणामों से यह बात तो तय हो गई कि जब भाजपा मैदान में होगी तो उसके लिये जीत का रास्ता निष्कंटक नहीं होगा लेकिन मोदी जैसे चेहरे को लेकर और इससे आगे कहें कि उनके भरोसे रहकर चुनाव लड़ेगी तो सौ दिन पुराना इतिहास दोहराया जाएगा. हालांकि एक पुरानी कहावत है काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है और यह परिणाम इस बात के संकेत हैं.
खैर, इस चुनाव परिणाम ने अबकी बार, मोदी सरकार कहने वालों को सजग कर दिया है क्योंकि यह आगाज अंजाम तक पहुंचा सकता है. निकट भविष्य में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में परिणाम उलटफेर वाले हो सकते हैं। उपचुनाव के परिणाम यह भी तय करेंगे कि आने वाले विधानसभा चुनाव में मोदी का चेहरा काम करेगा या भाजपा स्वयं मैदान में होगी. भाजपा में आत्ममंथन का दौर शुरू हो गया है और एक तरह से वे मोदीयुग से लौटने की तरफ है. हालांकि भाजपा की कमान सम्हाले अमित शाह ने कह दिया है उपचुनाव परिणाम से निराश होने की जरूरत नहीं है. विधानसभा चुनाव में जीत पक्की है. इसे एक ख्वाब भी कह सकते हैं. हालांकि इस परिणाम से भाजपा की पराजय दिखती जरूर है लेकिन दूरगामी फायदे का सौदा हो सकता है. आत्ममंथन के बाद भाजपा पराजय के कारणों की मीमांसा करेगी और अपनी स्थिति सुधारने का उसे जो मौका मिला है, उसका लाभ लेगी.
ऐतिहासिक पराजय से सदमें में कांग्रेस के लिये यह परिणाम एक तरह से संजीवनी का काम करते हैं. गुजरात में दो सीट और राजस्थान में तीन सीट की जीत बड़ी नहीं है लेकिन संबल देने के लिये काफी है. कांग्रेसियों सहित जो लोग सोनिया-राहुल को कोसने में आगे निकल रहे थे, अब उनके सुर बदल जाएंगे. राजनीति का यह पुराना रोग है इसलिये इसमें अंचभे की कोई बात नहीं. हां, इस जीत को कांग्रेस सबक की तरह ले और आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी जीत पक्की करने की कोशिश करे तो कम से कम दो-चार राज्यों के सहारे कांग्रेस का पांच वर्ष का वनवास कट सकता है.
समाजवादी पार्टी ने उत्तरप्रदेश में जो जीत दर्ज की है, वह अर्थवान है. जिस तरह से उत्तरप्रदेश, अपराध प्रदेश में बदल रहा था. इसके बावजूद इतनी बड़ी जीत भाजपा के लिये किसी सदमे से कम नहीं हैं. इस परिणाम ने एक और गांधी की आवाज तेज कर दी है. मेनका गांधी की ममता उमड़ रही है और वे अपने बेटेे को शीर्ष पर देखना चाहती हैं. पहले भी उन्होंने वरूण को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बनाने की बात कह चुकी हैं और अब इस परिणाम के बरक्स वे वरूण के दावे को पुख्ता बताने से नहीं चूक रही हैं. इससे अब देश को दो गांधी मिल जाएंगे. पहले राहुल गांधी तो जनता के सामने हैं ही, अब वरूण गांधी भी एक बड़े पद के दावेदार होंगे. मेनका की ख्वाहिश मुलायम के लिये राहत का विषय हो सकती है क्योंकि जिस तरह मेनका तेवर दिखा रही हैं, उससे समाजवादी पार्टी का नुकसान कम से कम होता जाएगा. बात साफ है कि इससे नुकसान भाजपा का ही होना है क्योंकि जिन दिग्गजों की नजरें बरसों से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है, वे वरूण को कैसे आगे बढऩे दे सकते हैं.
इन उप चुनाव के परिणाम ने मीडिया की एक और सूरत दिखा दी है. कुछ पत्रकार अभी मोदी फोबिया से बाहर नहीं आ पाये हैं. एक टेलीविजन चैनल में एक बड़े पत्रकार ने कहा कि मोदी के आने के बाद बढ़ती महंगाई को मीडिया ने बढ़-चढ़ कर दिखाया था लेकिन जब कीमतें घटीं तो खबरें नदारद थी. इस वजह से जनता में संदेश अच्छा नहीं गया और चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. शायद ये पत्रकार महोदय कभी अपने घर के लिये आलू, प्याज और टमाटर खरीदने नहीं जाते हैं. दस रुपये किलो बिकने वाला आलू 40 रुपये और 15 रुपये किलो बिकने वाला टमाटर 80 रुपये हो गया और कीमत गिरी भी तो आलू 25 के भाव और टमाटर चालीस के. अगर महंगाई पर यही नियंत्रण है तो फिर क्या कहना. इससे यह भी मान लेना चाहिये कि जिस तरह लोकसभा में मतदाताओं ने महंगाई से त्रस्त आकर 272 की जरूरत को पूरा कर 282 सीटें दिला दी तो अब महंगाई की तरह गिरेंगे तो यही चुनाव परिणाम आएगा. बहरहाल, इस उपचुनाव परिणामों से यह बात साफ हो गई है कि भाजपा एक राजनीतिक दल है और वह जब भी होगी, टक्कर कांटें की होगी लेकिन मोदी जैसा चेहरा उतारेगी तो कुछ राहत पा सकती है. भाजपा को तो कहना चाहिए बार बार, हर बार मोदी सरकार.
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