-अनामिका
कहते हैं कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती और ऐसी कोशिश करने वाले और आसमां छू लेने वालों से मुलाकात करनी है तो आपको छत्तीसगढ़ राज्य के उन गांवों में जाना होगा जिन गांवों के बारे में आज भी लोगों को ठीक से मालूम नहीं होता यदि उनके गांव की बिटिया अपने हौसलों के बूते खुद के साथ गांव का नाम रोशन नहीं किया होता। छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों और उनके सहयोग से स्वयं सहायता समूह की सफलताओं की अनेक कथाएं हैं लेकिन अब इससे आगे निकल कर उन लड़कियों ने मिसाल बनायी है जिस पर चलने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी लेकिन ऐसा हुआ है। शारीरिक रूप से अक्षम मानी जाने वाली लड़कियों के लिए बैशाखी उनका सहारा नहीं रही तो लगन ने ऐसे बेटियों को देश के नक्शे पर उभरने का अवसर दिया है। महिला सहभागिता और उनके आर्थिक समृद्धि-सशक्तिकरण के लिए किये जा रहे प्रयासों की अनकथ कथाएं और महिलाओं के लिए पे्ररणा का कार्य करती हैं।
राजधानी रायपुर से महज 25-30 किलोमीटर की दूरी पर बसा है धरसींवा विकासखंड और इसी विकास खंड का एक छोटा सा गांव है गिरौद। गिरौद दूसरे गांव की तरह कभी था लेकिन आज उसकी पहचान तारामती की सफलता के कारण अलग से चिंहित है। किसी राहगीर से पूछिए कि गिरौद कहां है तो शायद वह बता नहीं पाए लेकिन तारामती वाले गिरोद का पता वह झट से बता देगा। सवाल उठता है कि तारामती है कौन? कोई नेता, सामाजिक कार्यकर्ता या क्या जिसके नाम से गांव की पहचान बन गयी? जीहां, तारामती इनमें से कोई नहीं है। यह नाम है उस हौसलामंद युवती का जिनके आत्मविश्वास ने उन्हें और उनके गांव को नयी पहचान दी है। विशेष नि:शक्तता से पीडि़त तारामती का परिवार पिता की आमदनी पर पल रहा था। उनके पिता की आय से तारामती की कॉलेज की पढ़ाई भी चल रही थी लेकिन एक अनहोनी हो गई। पिता की अकाल मृत्यु से संकट का पहाड़ खड़ा हो गया। तारामती के कॉलेज की पढ़ाई तो दूर, रोजमर्रा के खर्चे के लिए खींचतान मचने लगी। तारामती के मन में था कि वह अपने परिवार को आर्थिक मदद करे। इसके लिए वह डाटा एंट्री ऑपरेटर बनना चाहती थी लेकिन यह ट्रेनिंग पाना उसके लिए मुसीबत भरा था। बिना फीस चुकाये कहां और कैसे ट्रेनिंग करे? यह बात अपनी जगह ठीक थी तो यह बात भी सच है कि जहां चाह है, वहां राह है।
तारामती की हिम्मत और जज्बे के आगे सारी मुसीबतें छोटी साबित हुई हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना ने तारामती के सपने को साकार करने में मदद दी। खुद तारामती बताती हैं कि हुआ यो कि संासद महोदय ने गिरौद गांव को आदर्श ग्राम बनाने हेतु चयन किया। इसलिये हमारा गांव पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना हेतु चिन्हांकित किया गया। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना की जानकारी मुझे मिली। थोड़ी कोशिश के बाद इस योजना के तहत मुझे कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव का 03 माह का नि:शुल्क प्रशिक्षण ओरियन एडूयेक्ट प्राईवेट लिमिटेड,रायपुर से प्राप्त करने का अवसर मिला। प्रशिक्षण के दौरान, प्रशिक्षण सामग्री, यूनिफार्म, बैग इत्यादि नि:शुल्क प्राप्त हुआ इसके साथ ही घर से प्रशिक्षण केन्द्र तक आने-जाने हेतु 100 रूपये प्रति दिन प्राप्त हुये।उन्हें प्रशिक्षण उपरांत ओरियन एडूयेक्ट प्राईवेट लिमिटेड, रायपुर में बैक ऑफिस एक्जीक्यूटिव का काम मिला। उन्होंने बताया कि आज वे अपने पैरों पर खड़ी हैं और अपने सारे काम अच्छे से कर रही हैं। उनका वेतन 6 हजार रू. प्रतिमाह है। आर्थिक रूप से सक्षम होने के कारण अब वे अपने परिवार की भी मदद कर रही हैं। वे इस योजना के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और शासन को धन्यवाद देते नहीं थकती हैं।
नि:शक्ता को पीछे छोडक़र अपने पैरों पर खड़े होने वाली गिरौद की तारामती जैसी ही रोचक कहानी है कि मायासिंह सिरदार की। कोरबा जिले की 22 साल की माया के पिता पुन्नीराम सिदार घर पर ही छोटा सा किराना दुकान चलाते हैं। इसके अलावा परिवार की आर्थिक जरूरतों की पूर्ति के लिए खेतों में भी काम करते हैं। हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी वह बच्चों की उच्चशिक्षा का बोझ नहीं उठा पा रहे थे। ऐसे में माया ने 12 कक्षा के बाद पारिवारिक आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। तारामती की तरह माया ने भी हौसला नहीं छोड़ा और अपने सहपाठियों से उसे जानकारी मिल की मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत हूनरमंद लोगों के लिए नि:शुल्क कोर्स चलाए जा रहे हैं। इसके लिए उसने अपने नजदीकी वेदान्त आई. एल. एंड एफ.एस स्किल्स स्कूल में सम्पर्क किया और हास्पिटालिटी कोर्स के लिए अपना नाम दर्ज कराया । राज्य सरकार की इस योजना में माया ने 45 दिनों के प्रशिक्षण के दौरान होटल में होने वाली सभी जरूरी बातें तथा स्वयं के व्यक्तित्व विकास के बारे में कई तरीके सीखें । जैसे-मेहमानों का स्वागत करना, उनसे बातें करना,खाना-परोसना आदि।
माया की औपचारिक शिक्षा भले ही 12वीं कक्षा तक थी लेकिन कौशल उससे कहीं आगे की। राजधानी रायपुर स्थित एक होटल में 7 हजार की नौकरी भी की लेकिन उसकी उड़ान की तो यह शुरूआत थी। माया अब नए अवसरों की तलाश में थी। जल्द ही माया को गुजरात के पोरबंदर के होटल लॉड्स ईको इन में होस्टेस के पद पर काम करने का अवसर मिल गया। आज वह हर माह 12,500 का वेतन पा रही है। अपनी खुद की कमाई से उसने आगे पढ़ाई जारी रखते हुए स्नातक की डिग्री हासिल की और अब माया एम.बी.ए. भी करना चाहती है। माया बताती है कि जिंदगी में कई बार इंसान को कुछ कड़े फैसले सिर्फ इसलिए लेने चाहिए ताकि वे अपनी जीवन शैली में एक बड़ा बदलाव ला सके। तारामती हो या माया, इनके बुलंद हौसलों ने इन्हें नयी जमीन दी है। सरकार की योजनाएं इनके लिए महज माध्यम बना है लेकिन इनके जज्बे ने इन्हें उड़ान भरने का मौका दिया है।
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