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सालगिरह का उल्लास

1 नवम्बर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस विशेष 

मनोज कुमार
एक और साल जश्र का, उत्साह का, विकास का और सद्भाव का. यह बहुत कम दफे ही होता है कि एक ही तारीख पर दो लोग सेलिब्रेशन कर रहे हों लेकिन ऐसा होता आ रहा है और एक-दो नहीं बल्कि 17 सालों से जो अनवरत चलता रहेगा. 17 साल पहले एक नवम्बर को मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई थी. 61 साल पहले यह वही तारीख है जिस दिन नए मध्यप्रदेश का गठन हुआ था. छत्तीसगढ़ अलग हो जाने से मध्यप्रदेश एक बार फिर से नए मध्यप्रदेश बन चुका है क्योंकि भौगोलिक रूप से मध्यप्रदेश का पुर्नसंयोजन किया गया. जो प्रदेश कभी एक हुआ करते थे, आज भौगोलिक रूप से अलग होकर भी एक हैं दिल से. 17 सालों में दोनों राज्यों के मध्य सौहाद्र्रता बनी हुई है और आपस में कभी कोई गर्माहट की नौबत नहीं आयी. शायद यही कारण है कि मध्यप्रदेश में शिवराजसिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में डॉ. रमनसिंह की सरकार डेढ़ दशक के स्थायित्व वाली सरकार बन गई है. सीमित संसाधन, चुनौतियां अपार और संभावनाओं का द्वार खोलते मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़.
मध्यप्रदेश देश का ह्दयप्रदेश कहलाता है. अपने निर्माण के साथ ही समूचे भारत वर्ष के भाषा-भाषायी, संस्कृति और विभिन्न धर्मों के लोग यहां रहने आए. लघु भारत के रूप में मध्यप्रदेश ने सद्भाव के रूप में अपनी अलग छाप छोड़ी. कई बार विपरीत स्थितियां निर्मित हुई लेकिन मध्यप्रदेश ने संयम नहीं खोया और हर मुश्किल की घड़ी में अपने आपको साबित कर दिखाया. 2003 में मध्यप्रदेश में सबसे बड़ा राजनीतिक फेरबदल होता है. इस बार भारतीय जनता पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में आती है. हालांकि इसके पहले भी गैर-कांग्रेसी दल सत्ता में आते रहे हैं लेकिन उनका कार्यकाल यादगार नहीं रहा. भाजपा की सरकार पूर्ण बहुमत से आयी तो एक बार फिर आशंका थी कि यह सरकार प्रदेश को स्थायित्व नहीं दे पाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. शुरू के दो साल में दो मुख्यमंत्री क्रमश: उमा भारती और बाबूलाल गौर बनें लेकिन तीसरे साल मुख्यमंत्री के रूप में शिवराजसिंह चौहान ने सत्ता की कमान सम्हाल तो वे इतिहास लिख गए. एक दो नहीं बल्कि लगातार 12 वर्षों से मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश में भाजपा की सरकार को स्थायी बनाया है बल्कि मध्यप्रदेश को विकास की ऊंचाईयों तक पहुंचाने में कामयाब रहे हैं.
इन 17 सालों में छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. रमनसिंह भाजपा के भीतर सबसे लम्बे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित हुए हैं तो छत्तीसगढ़ ने विकास की जो इबारत लिखी है, वह बार बार कहने के लिए विवश करता है सबले बढिय़ा, छत्तीसगढिय़ा. सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण होता है और तीन साल बाद पहला विधानसभा चुनाव छत्तीसगढ़ में होता है. इस चुनाव में मध्यप्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जाता है. छत्तीसगढ़ में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आती है और सरल, सहज और ठेठ छत्तीसगढिय़ा डॉ. रमनसिंह को राज्य की बागडोर दी जाती है. दूरदृष्टि, पक्का इरादा लेकर राज्य को संवारने में डॉ. रमनसिंह जुट जाते हैं. वे राजनीति में आने के पहले आयुर्वेद के डॉक्टर थे और तब के कवर्धा (आज का कबीरधाम) के लोगों का मुफ्त में इलाज किया करते थे. उनके मन में लोगों के प्रति सहानुभूति एवं दया का भाव आरंभ से था. सो इसी भाव से वे राज्य की तकदीर संवारने में जुट गए और आज छत्तीसगढ़ देश ही नहीं, विदेशों में अलग से चिंहित है. डॉ. रमनसिंह और शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में दोनों राज्यों में 2003, 2008 और 2013 का चुनाव पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा जीत लेती है. 2018 में भी दोनों के नेतृत्व में चुनाव लड़े जाने की पूर्ण संभावना है और इस बात के आसार बड़े हैं कि एक बार फिर सत्ता में भाजपा की वापसी हो सकती है. भाजपा की वापसी एक राजनीतिक दल के रूप में तो होगी ही, अपितु उनके मुख्यमंत्रियों के अथक परिश्रम से प्रदेश की बदलती तस्वीर इस जीत का एक बड़ा कारण होगी.
आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ राज्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती यहां की नक्सल समस्या है. इसके साथ ही अशिक्षा और आर्थिक पिछड़ापन छत्तीसगढ़ को आगे बढऩे नहीं दे रहा था. अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा रहते हुए सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले छत्तीसगढ़ के विकास के लिए कोई ऐसा रोडमेप तैयार नहीं किया गया था जिससे यहां का विकास हो सके. राज्य का दर्जा मिलने के बाद सत्तासीन पहली कांग्रेस सरकार का फोकस भी शहरों की तरफ था और इस एजेंडे से आम आदमी निराश हो चला था. इस निराशा का ही परिणाम था जनमत ने भाजपा को अपने नेतृत्व के लिए चुना. और भाजपा ने डाक्टर साहब कहे जाने वाले सादगी पसंद, दूरदृष्टा डॉ. रमनसिंह को राज्य की बागडोर सौंप दी. आरंभिक दिन कुछ उथल-पुथल के थे लेकिन जिस तरह जहाज उडऩे से पहले कुछ दूर तक रेंगता है और फिर आसमान छूने लगता है, ठीक वैसा ही रमनसिंह ने अपने कार्यक्रमों को, एजेंडे को आगे बढ़ाया. आज छत्तीसगढ़ राज्य के चारों तरफ खुशियां हैं, विकास है और उम्मीदें ठाठें मार रही हैं. छत्तीसगढ़ का यह विकास किसी और के लिए तकलीफ का कारण हो सकता है कि तमाम किस्म की चुनौतियों से निपटते हुए विकास के रास्ते पर सबसे आगे और सबसे अलग छत्तीसगढ़ दिख रहा है.
छत्तीसगढ़ के विकास को मापना हो तो उन तथ्यों और आंकड़ों का मिलान करना होगा जो सच की तस्वीर पेश करते हैं जैसे कि 2003 में राज्य का बजट लगभग 7 हजार करोड़ था जो अब 78 हजार करोड़ से अधिक है तो राज्य में प्रति व्यक्ति आय 10 हजार से बढक़र 82 हजार हो गई है. बिजली उत्पादन में छत्तीसगढ़ कभी पीछे नहीं रहा लेकिन सुनियोजित प्रयासों ने राज्य की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 4,732 मेगावॉट से बढ़ाकर 22,764 मेगावाट करने में सफलता पायी है। रमनसिंह सरकार राज्य के लोगों के सेहत के लिए भी फ्रिकमंद है. यही कारण है कि शिशु मृत्युदर 63 से घटकर 46 प्रति एक हजार दर्ज की गई है तो मातृ मृत्यु दर प्रति लाख 365 से घटकर 221 पर ठहर गई है. कुपोषण 52 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत हो गई है जिसमें और कमी के प्रयास निरंतर जारी है. महिलाओं और बच्चों के लिए अनेक किस्म की विशेष योजनाएं बनायी गई है जिसमें प्रधानमंत्री उज्जवला योजना का सक्रियता से पालन किया जा रहा है. कल तक धुंये वाले चूल्हे में रसोई का काम करने वाली महिलाओं में कुछ बीमारियां होती थी, आज उन्हें गैस चूल्हा मिल जाने से राहत मिली है. इसी तरह बाल ह्दयरोग से बच्चों को मुक्ति दिलाने के लिए बड़े स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। राज्य के पीडीएस सिस्टम की देश भर में प्रशंसा हुई है और लोगों को सहज रूप से खाद्यान्न मिलना संभव हुआ है. एक रुपये किलो चावल और दूसरी रोजमर्रा जरूरतों की चीजें मिल जाने से छत्तीसगढ़ राज्य पलायन से मुक्त हुआ है. 
छत्तीसगढ़ के विकास मेें सबसे अहम योगदान रमन सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किया गया कार्य है. शहरों से लेकर अंतिम पंक्ति पर बैठे परिवार का बच्चा-बच्चा स्कूल जाए, इसके लिए अथक प्रयास किए जा रहे हैं. खासतौर पर बालिका शिक्षा के लिए जो कार्य छत्तीसगढ़ में हुए हैं, वह दूसरे राज्यों के लिए आदर्श के रूप में उपस्थित हैं. गणवेश, किताबें, फीस और स्कूल आने-जाने के लिए नि:शुल्क सायकल आदि ने बच्चों को स्कूल जाने के लिए आकर्षित किया है क्योंकि असुविधाओं और आर्थिक परेशानियों के चलते प्राथमिक स्कूल से आगे पढ़ नहीं पाते थे. सबसे बड़ा काम नक्सली क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के बच्चों के लिए सरकार ने किया है. छू लो आसमां जैसी योजनाओं के तहत उनके लिए पृथक से स्कूल आश्रम शालाएं, कोचिंग और अन्य व्यवस्था की गई जिसका परिणाम यह निकला कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बच्चे साल-दर-साल हैरत में डाल देने वाली कामयाबी प्राप्त कर रहे हैं. पीईटी, पीएमटी, ट्रीपल टीआई के अलावा स्वरोजगार में भी इनकी कामयाबी छत्तीसगढ़ को उपलब्धियों से भर देती है. प्रतिभाओं को निखारने और उन्हें मंच देने का काम सरकार ने किया और सरकार के प्रयासों को छत्तीसगढ़ की प्रतिभाओं ने किया. 
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मध्यप्रदेश के हितार्थ ऐसी योजनाएं आरंभ की जिससे न केवल आम आदमी का भला हुआ बल्कि पूरे देश में मध्यप्रदेश का डंका बजा. मध्यप्रदेश की अनेक योजनाओं को देश के भाजपा और गैर-भाजपाशासित प्रदेशों ने लागू किया. यह मध्यप्रदेश के लिए गौरव की बात है. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह की चिंता आरंभ से बेटियों के प्रति रही है. उनके जन्म से लेकर ब्याह तक की व्यवस्था उन्होंने सरकार के जिम्मे ले ली. लाडली लक्ष्मी योजना से लेकर कन्यादान योजना ने जैसे महिला सशक्तिकरण का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है. राजनीति में भी महिलाओं की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण का प्रावधान करने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला प्रदेश है. रोजगार के लिए भी उनके लिए व्यापक इंतजाम किया गया है. जो कसर रह गई थी उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आरंभ की गई योजना यथा उज्जवला योजना को लागू कर महिलाओं को धुंआ-धुंआ होती जिंदगी से निजात दिलाने का सार्थक प्रयास हुआ है. शिवराजसिंह की योजनाओं से स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रभावित हैं. इसलिए बेटी बचाओ योजना में, बेटी पढ़ाओ जोडक़र उसे देशव्यापी बना कर शिवराजसिंह का समर्थन करते हैं. किसानों को लेकर मुख्यमंत्री चौहान की चिंता सबसे आगे रही है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का शुभारंभ करने स्वयं नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के शेरपुर पहुंचते हैं. यह शिवराजसिंह की चिंता का ही सबब है कि मध्यप्रदेश लगातार पांच वर्षों तक कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त करता रहा है. बुर्जुर्गों के लिए मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना तो पूरे भारतीय समाज के लिए आदर्श योजना साबित हुई है. सरकार की योजना और कार्यक्रम समयबद्ध परिणाममूलक बने, इसके लिए दुनिया में पहली बार लोक सेवा गारंटी कानून लाया गया. यह पहली बार हो रहा है कि आम आदमी को समयबद्ध सेवा नहीं मिलने पर लोकसेवकों को दंड देने का प्रावधान किया गया है. 
इस तरह 17 सालों में मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ ने विकास के नित नए आयाम छुए हैं. मुख्यमंत्री रमनसिंह को चाउर वाले बाबा कहा गया तो शिवराजसिंह चौहान बच्चों के मामा कहलाए. दोनों ही कामयाब मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. ऐसा भी नहीं है कि सबकुछ बेहतर हुआ, कुछ कमियां भी रह गई. इसके भी कई कारण हैं. छत्तीसगढ़ राज्य के समक्ष नक्सलियों की चुनौती है तो मध्यप्रदेश में सिमी का खौफ. चुनौतियों और संभावनाओं के बीच इन 17 सालों ने दोनों राज्यों को बेहतर से बेहतर बनते देखा है. उम्मीद की जाना चाहिए कि सालगिरह के यह उल्लास सालों-साल बना रहे.

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