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##विश्व सिकलसेल दिवस 19 जून







सिकलसेल के खिलाफ महामहिम का सामाजिक सरोकार

प्रो. मनोज कुमार

महामहिम अर्थात राज्यपाल के बारे में आमतौर पर धारणा यह है कि उनका सरोकार राज्य की सत्ता पर निगरानी रखना होता है और यह कि वे सामाजिक सरोकार से दूर रहते हैं। मध्यप्रदेश के महामहिम मंगूभाई पटेल ने इस धारणा को ध्वस्त करते हुए जता दिया है कि राज्यपाल राजभवन की चहारदीवारी में रहने के लिए नहीं बल्कि उनका भी समाज में हस्तक्षेप जरूरी है। सिकल सेल बीमारी को नेस्तनाबूद करने के लिए मध्यप्रदेश के गर्वनर मंगूभाई पटेल ने सर्वाधिक सक्रियता के साथ इस अभियान में जुटे हुए हैं। मध्यप्रदेश में गर्वनर श्री पटेल लगातार लोगों के बीच जाकर जागरूकता फैला रहे हैं। गर्वनर के इन प्रयासों का समाज में असर देखने को मिल रहा है। मध्यप्रदेश के शहडोल जिले से सिकल सेल एनीमिया के खात्मे के संकल्प के साथ एक जनअभियान की शुरूआत हो चुकी है। 

यह जान लेना जरूरी है कि सिकल सेल एनीमिया किस तरह आदिवासी समाज का काल का ग्रास बना रही है, यह जानने से पहले जरूरी है कि यह जान लें कि अकेले मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि देश के करीब 17 राज्यों 7 करोड़ से अधिक आदिवासीजन इस बीमारी की चपेट में हैं। आबादी के मान से मध्यप्रदेश एक बड़ा आदिवासी प्रदेश है लिहाजा मध्यप्रदेश सर्वाधिक प्रभावित राज्य माना जा सकता है. वैसे इस समय देश के 17 जिलों में इस बीमारी का प्रकोप है जिनमें मुख्य रूप से ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल में यह बीमारी जड़े जमाए हुए है। आए दिन जनजातीय समुदाय की मौतें एनीमिया सिकल सेल में कारण हो रही है। मध्यप्रदेश में एनीमिया सिकलसेल आदिवासी बाहुल्य इलाकों में ज्यादा फैला हुआ है उनमें शहडोल, उमरिया, अनुपपुर, बालाघाट, डिंडोरी, मंडला, सिवनी, छिंदवाड़ा, बड़वानी, अलीराजपुर, बुरहानपुर, बैतूल, धार, शिवपुरी, होशंगाबाद, जबलपुर, खंडवा, खरगोन, रतलाम, सिंगरौली और सीधी के नाम शामिल हैं. सिकल सेल रोग (एससीडी) एक क्रोनिक एकल जीन विकार है जो क्रोनिक एनीमिया, तीव्र दर्दनाक एपिसोड, अंग रोधगलन और क्रोनिक अंग क्षति और जीवन प्रत्याशा में महत्वपूर्ण कमी की विशेषता वाले दुर्बल प्रणालीगत सिंड्रोम का कारण बनता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार आदिवासी जिलों में सरकारी स्वास्थ सेवाओं के हाल में पहले की तुलना में सुधार तो हुआ है लेकिन सिकल सेल एनीमिया को उतनी गंभीर बीमारी नहीं माना जा रहा है जितनी यह गंभीर है। हालाँकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत, भारत सरकार अपने वार्षिक पीआईपी प्रस्तावों के अनुसार सिकल सेल रोग की रोकथाम और प्रबंधन के लिए राज्यों का समर्थन करती है।  वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में, 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए एक मिशन शुरू करने की घोषणा की गई है। इस मिशन में जागरूकता सृजन, प्रभावित क्षेत्र में 0-40 वर्ष आयु वर्ग के लगभग सात करोड़ लोगों की सार्वभौमिक जांच पर ध्यान केंद्रित किया गया है। केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारों के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से जनजातीय क्षेत्रों और परामर्श. सिकल सेल रोग की जांच और प्रबंधन में चुनौतियों से निपटने के लिए मध्यप्रदेश में राज्य हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन की स्थापना की गई है। प्रधानमंत्री द्वारा बीते 15 नवंबर 2021 को मध्यप्रदेश के झाबुआ और अलीराजपुर जिले और परियोजना के दूसरे चरण में शामिल 89 आदिवासी ब्लॉकों में स्क्रीनिंग के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की गई। राज्य द्वारा दी गई रिपोर्ट के अनुसार कुल 993114 व्यक्तियों की जांच की गई है जिनमें से 18866 में एचबीएएस (सिकल ट्रेट) और 1506 (एचबीएसएस सिकल रोगग्रस्त) पाए गए हैं। इसके अलावा, राज्य सरकार ने रोगियों के उपचार और निदान के लिए 22 जनजातीय जिलों में हीमोफिलिया और हीग्लोबिनोपैथी के लिए एकीकृत केंद्र की स्थापना की है।

सिकल सेल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है। इस आनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्लड सेल्स या तो टूट जाती हैं या उनका साइज और शेप बदलने लगती है जो खून की नसों में ब्लॉकेज कर देती हैं। सिकल सेल एनीमिया में रेड ब्लड सेल्स मर भी जाती हैं और शरीर में खून की कमी हो जाती है। जेनेटिक बीमारी होने के चलते शरीर में खून भी बनना बंद हो जाता है। वहीं शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण यह रोग कई जरूरी अंगों के डेमेज होने का भी कारण बनता है। इनमें किडनी, स्प्लीन यानि तिल्ली और लिवर शामिल हैं। 

लक्ष्य है कि साल 2047 तक इस रोग को भारत से जड़ से खत्म कर दिया जाए। इसी कड़ी में पीएम मोदी ने शहडोल में सिकल सेल कार्ड वितरण कर बीमारी की स्क्रीनिंग के लिए लोगों को जागरूक करने का संदेश दिया था। गर्वनर की देखरेख में राज्य सरकार भी सक्रिय हुई और पहले की तुलना में काफी कुछ सुधार देखने को मिल रहा है। सिकलसेल के खिलाफ इलाज और परीक्षण से ज्यादा जरूरी आदिवासी समाज को जागरूक करना है। इस बीमारी में सबसे अहम सिकल सेल बीमारी को रोकने का एक प्रभावी तरीका इस रोग से ग्रस्त स्त्री-पुरुषों में विवाह को रोकना है। लेकिन यह तभी संभव है, जब सिकल सेल रोगग्रस्त लोगों की पहचान हो और उनके बीच विवाह संबंधों पर रोक लगे। यह काम लोगों में इस रोग के प्रति जागृति फैलाने से ही हो सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार सिकल सेल एनीमिया 3 प्रकार का होता है। पहला प्रकार सिकल वाहक है, सिकल वाहक में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते और ऐसे व्यक्ति को उपचार की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन ऐसे व्यक्ति को यह पता होना चाहिये कि वह सिकल वाहक है। यदि अनजाने में सिकल वाहक दूसरे सिकल रोगी से विवाह करता है, तो सिकल पीडि़त संतान पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। दूसरे प्रकार के सिकल रोगी में सिकल सेल बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं। इन्हें उपचार की आवश्यकता होती है। सिकल बीटा थेलेसिमिया तीसरे प्रकार का सिकल सेल रोग है। बीटा थैलेसिमिया बीटा ग्लोबिन जीन में दोष के कारण होता है। सिकल सेल बीमारी अनुवांशिक बीमारी है. सिकल सेल रोगी के साथ खाना खाने, साथ रहने, हाथ मिलाने अथवा गले मिलने से यह रोग नहीं होता। यह बीमारी केवल माता-पिता से ही बच्चों में आ सकती है। सिकल सेल में रोगी की लाल रक्त कोशिकाएं हंसिए के आकार में परिवर्तित हो जाती हैं। हंसिए के आकार के ये कण शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंच कर रुकावट पैदा करते हैं। इस जन्मजात रोग से ग्रसित बच्चा शिशु अवस्था से बुखार, सर्दी, पेट दर्द, जोड़ों एवं घुटनों में दर्द, सूजन और कभी रक्त की कमी से परेशान रहता है। सिकलसेल-एनीमिया ऐसा रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं जल्दी टूट जाती है। इसके कारण एनीमिया और अन्य जटिलताएं जैसे कि वेसो-ओक्लुसिव क्राइसिस, फेफड़ों में संक्रमण, एनीमिया, गुर्दे और यकृत की विफलता, स्ट्रोक आदि की बीमारी और यहां तक की पीडि़त के मौत तक की आशंका रहती है। 

सिकल सेल एनीमिया रोग दुनिया में है तो काफी पहले से, लेकिन वैज्ञानिकों को इसका पता पहली बार 1910 में कैरेबियाई देश ग्रेनाडा में चला। वहां इसे एक मेडिकल छात्र लिनस पॉलिंग और उसके सहयोगियों ने खोजा। उन्होंने बताया कि इस रोग से ग्रस्त रोगियो में सिकल हीमोग्लोबिन में एक असामान्य परिवर्तित इलेक्ट्रोफोरेटिक (विद्युत कण संचलन) गतिविधि देखने में आई है। 1949 में पहली बार इसे आण्विक रोग के रूप में पारिभाषित किया गया। 1957 में वेर्नन इनग्राम ने बताया कि सिकल सेल हीमोग्लोबिन रोग का मूल कारण हीमोग्लोबिक अणुओं में एकल अमीनो एसिड का प्रतिस्थापन है। इस रोग के कारणो का तो कुछ पता लग गया है, लेकिन इसका स्थायी इलाज अभी तक नहीं खोजा जा सका है। लिहाजा देश में सिकल एनीमिया को लेकर शुरू किया गया देशव्यापी अभियान इसी अनिवार्यता का हिस्सा है। 

मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल इस बीमारी के खिलाफ जन-जागृति के लिए प्रयासरत हैं. अपने हर कार्यक्रम में वे लोगों को इस बीमारी के बारे में बताते हैं और इस बीमारी के खिलाफ खड़े होने का आग्रह करते हैं. सिकल सेल एनीमिया के खिलाफ इस जंग में सरकारों को राजनीतिक लाभ ना मिले लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता मौत के मुंह में समा रहे लोगों को नया जीवन जरूर मिल सकेगा. सिकल सेल एनीमिया के खिलाफ सरकार ने जो अभियान शुरू किया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि इसका सुपरिणाम देखने को मिलेगा. इसमें सबसे प्रबल पक्ष यह है कि लोगों तक शासकीय अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी पहुंचे. यही नहीं, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का दस्ता घर-घर जाकर सरकारी दवाखाना में आने के लिए प्रेरित करे. स्कूलों, पंचायतों और आंगनवाड़ी में कैम्पेन चलाया जाए. सरकार ने अभियान शुरू किया है, यह तो एक पक्ष है लेकिन समाज का साथ में सक्रिय होना भी जरूरी है. राज्य की मोहन सरकार ने भी इस दिशा में सकरात्मक प्रयास कर रही है जिसका असर दिख रहा है. हालाँकि बीमारी का निदान किया जाना कठिन है लेकिन जनजागरूकता से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। एक संभावना का उदय हो चुका है. (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया शिक्षा से संबद्ध हैं) 

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