मैं नहीं जानता कि बहस किस बात पर चल रही है किन्तु जिन मुद्दों पर बात चल रही है वह एतराज करने वाली है। मैं एक बेहद पारम्परिक परिवार से हूं जहां छोटी छोटी बातों पर गौर किया जाता है किन्तु मैं और मेरा परिवार लड़कियों के भविष्य के खिलाफ कतई नहीं रहा है। मेरा आग्रह हमेशा रहा है कि मर्यादित व्यवहार कर लड़की हो या लड़का, अपने काम की तरफ पहले ध्यान दे। बहरहाल, पहली बात तो यह कि लड़कियों के काम करने पर जो लोग आपत्ति दर्ज करा रहे हैं, वे डरे हुए लोग हैं। मैं एक बेटी का पिता हूं और उसकी उम्र अभी महज दस वर्ष है लेकिन उसके भविष्य के लिये मेरे पास अगले दस साल की प्लानिंग है। वह भी पायल और पायल जैसी लड़कियों की कतार में लगेगी और अपना कैरियर बनाने की कोशिश करेगी। मेरे लिये आज की पायल और कल की अपूर्वा में कोई फर्क नहीं दिखता।दूसरा एक मुद्दा कपड़े पहने जाने को लेकर है। यह भी समझ से परे है कि एक लड़की के जींस पहने जाने पर हंगामा क्यों? मेरा तो मानना है कि शरीर के बनावट और काम की जरूरत के हिसाब से कपड़े पहने जाने चाहिए। रिपोर्टिेग करते जाते समय किसी भी लड़की से अपेक्षा की जाये िकवह लहंगा-चुन्नी पहन कर काम करे तो यह बेवकूफी से कम की बात नहीं है।मैं विगत तीस वषों से प्त्रकारिता कर रहा हूं। मीडिया के स्टूडेंट को पढ़ाने जाता हूं। यंग व स्मार्ट बच्चियां जब मौजूदा स्थितियों पर सवाल करती हैं तो मन को संतोष होता है कि चलो भावी पीढ़ी कुछ नया कर दिखायेगी। ऐसे में मेरा कहना है कि जो लोग भी इस तरह की बात कर रहे हैं उन सभी, खासतौर से मीडिया में जुड़े लोगों से मेरा आग्रह है कि मानसिकता ऐसी है तो कृप्या मीडिया से दूर हो जाएं। लड़कियों को भी एक सलाह है कि वे अपने शिक्षक अथवा सीनियर्स के पैर न छुए बल्कि नमस्कार से काम चला लें। मीडिया खुलेपन के लिये है न कि मानसिक रूप् से बीमार लोगों के लिये।मनोज कुमारk.manojnews@gmail.com
सोमवार, 2 नवंबर 2009
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