शनिवार, 8 मई 2010

एक माँ के लिए


एक मां के लिये

बड़ी भली है अम्मा मेरी मुझको रोज ताजा दूध पिलाती है
कभी सांची तो कभी अमूल का पैकेट लेकर आती है
रोज रोज बढ़ते दूध के दाम भी अम्मां को नहींे डरा पाती है
लल्ला को दूध पिलाने खुद भूखी रह जाती है
बड़ी भली है अम्मा मेरी मुझको रोज ताजा दूध पिलाती है
अम्मां की नहीं थी कोई आस, चिंता थी उसके पास
उसका लल्ला कब गबरू जवान बनेगा
मिट जाएगी उसकी चिंता
घड़ी बदली, घंटा बदला बदला जीवन का रेला
बैठ रेल में लल्ला चल पड़ा अकेला
अम्मा रह गयी अकेली लल्ला की यादों में
अम्मा तक रही रहा अभी अभी लल्ला आएगा और कह जाएगा
बड़ी भली है अम्मा मेरी मुझको रोज ताजा दूध पिलाती है

मनोज कुमार

5 टिप्‍पणियां:

  1. पढ़ते हुए ऐसा लगा पंख लगा कर अभी यहाँ (सहर ) से गाँव अपने माँ के पास पहुच जाऊ और उसको बहुत बहुत प्यार करू उसके सरे गम को दूर कर हँसाने की हर संभव कोशिश करू. !! पर क्या करू क्या करू काया करू ??????????

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  2. dada mail kiya hai aur mere blog par bhi aapki kavita chipka di hai dekhiyega jaroor
    http://pungibaaj.blogspot.com/2010/05/blog-post_08.html

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  3. बहुत ही मार्मिक लेकिन सच है.. गुरुदेव को चरण स्पर्श

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  4. बहुत ही मार्मिक लेकिन सच है .. गुरुदेव को चरण स्पर्श

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