बुधवार, 29 अक्टूबर 2025

मैं मध्यप्रदेश हूँ... देश का ह्दयप्रदेश



प्रो. मनोज कुमार

मैं मध्यप्रदेश हूँ। हिन्दुस्तान का ह्दय प्रदेश। मेरी पहचान है  सतपुड़ा के घने जंगल, कल...कल कर बहती नर्मदा, ताप्ति, चंबल, बेतवा जैसी जीवनदायिनी नदियाँ मेरी पहचान है अकूत खनिज सम्पदा लौह, अयस्क, तांबा, जस्ता और हीरा। मैं एक प्रदेश ही नहीं हूँ... एक परम्परा हूँ। जी हाँ, सर्वधर्म और समभाव की परम्परा का प्रदेश। आज ही के दिन अर्थात एक नवम्बर को मेरा जन्म हुआ था। साल उन्नीस सौ छप्पन में जब मुझे मध्यप्रदेश का नाम मिला तब मैं भारत के सबसे बड़े भूभाग वाला प्रदेश हुआ करता था। झाबुआ से लेकर बस्तर तक मेरी धडक़न महसूस की जा सकती थी। सन् दो हजार तक मैं भारत देश का सबसे बड़ा भूभाग वाला प्रदेश था। इसी दिन मेरे जन्म के साथ मेरा विघटन भी हो गया। मुझसे अलग कर छत्तीसगढ़ को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिया गया। मैं देश का ह्दयप्रदेश हूँ सो इस अलगाव से दुखी नहीं हुआ बल्कि बड़े दिल का परिचय देकर मैंने स्वयं छत्तीसगढ़ राज्य बनाये जाने का मार्ग प्रशस्त किया।

उन्नहत्तर साल पहले जब मेरा जन्म हुआ था। साल 2025 में मेरा जो चेहरा-मोहरा है, वह साल 1956 में नहीं था। तब मैं आज की तरह सुडौल नहीं था। न ही मेरी विकास की कोई कहानी थी। मैं बिखरा बिखरा सा था। मेरा निर्माण विंध्य, मध्यभारत, भोपाल रियासत एवं महाकोशल को मिलाकर हुआ। स्वप्रदृष्टा पंडित रविशंकर शुक्ल के हाथों मेरा पहले-पहल लालन-पालन हुआ। पंडित शुक्ल ने मेरे लिये सपने बुने थे। नियति को यह मंजूर नहीं था। बहुत थोड़े समय अपना स्नेह देकर वे हमेशा-हमेशा के लिये मेरा साथ छोड़ कर पंचतत्व में विलन हो गये। मेरी सल्तन के पहले मुख्यमंत्री होने का गौरव पंडित रविशंकर शुक्ल के खाते में है। दिन पर दिन गुजरते गये। एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे हाथों ने मुझे तराशा। मुझे संवारा। मैं आकार लेने लगा। उन्नीस सौ छप्पन से दो हजार पच्चीस तक मेरी विकास की गति थमी नहीं है।

इन सालों के सफर की कहानी रोचक है। रोमांचक है। कई कई मोड़ आये। मैंने कई शासकों को देखा है और परखा है। सबने अपनी अपनी दृष्टि और समझ से मेरे विकास की रूपरेखा तय की। राज किसी भी दल ने किया। मुख्यमंत्री कोई भी रहा। हर बार सत्ता सम्हालने वालों ने मेरे विकास के लिये रास्ता ढूंढ़ा। कहते हैं पानी अपना रास्ता स्वयं बना लेता है। बस मैं भी पानी की तरह बहता रहा। जब जहाँ जब अवसर मिला, मैंने अपने लिए विकास का रास्ता बना लिया। मेरी सल्तनत जिन हाथों ने सम्हाली उनमें सबसे कम एक दिन के मुख्यमंत्री के रूप में अर्जुनसिंह को भी याद किया जाएगा, तो पन्द्रह दिनों के लिये मुख्यमंत्री के रूप राजा नरेशचन्द्र का नाम भी इतिहास में दर्ज है। सर्वाधिक लम्बे समय तक मेरी सल्तनत सम्हालने वालों में मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराजसिंह चौहान पहले और दूसरे नंबर पर दिग्विजयसिंह रहे। वर्तमान में डॉ. मोहन यादव मुझे विकास की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में लगे हैं। 

मेरी पहचान शांति के टापू के रूप में है। मेरी बच्चे (जनता) बेहद संयमित है। उसका संयम गजब का है। वे धर्म और जाति के नाम पर कभी फसाद नहीं करते। नर्मदा का जल उनकी रगो में है। इसलिए मुझे धर्मनिरपेक्ष, सर्वधर्म समभाव का प्रदेश भी कहा जाता है। कभी किसी की भावना आहत करना मेरे चरित्र में नहीं है। हाँ, मेरे साथ अन्याय हुआ तो उसका हिसाब चुकता भी कर दिया जाता है। सालों साल कांग्रेस ने मुझ पर राज किया। विकास के वायदे किए लेकिन वैसा नहीं हुआ, जैसा मेरे लिए कल्पना की गई थी। इसका रंज मुझे था। मेरे बारे में यह भी कहा जाता है कि रंज आ जाये तो रंजिश भी मेरी जनता निकाल लेती है। दो हजार तीन के राज्य विधानसभा चुनाव में उसने अपनी तकलीफों का बदला ले लिया। सत्ताधारी दल को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसी के साथ मेरा समय बदलता है। सत्ता बदली तो शासक भी बदले। दो हजार तीन में मेरे सल्तन की पहली मुख्यमंत्री बनीं उमा भारती। इसके बाद मेरी सल्तनत के दूसरे वजीर बने बाबूलाल गौर। दो हजार पाँच में मेरा समय एकाएक बदल जाता है। यह वह समय है जब मेरे शिवराजसिंह चौहान मेरे नये मुखिया होते हैं। किसान का यह बेटा मेरी तकदीर लिखने आया था।जब मैं शिवराजसिंह की चर्चा करता हूँ, रोमांचित हो जाता हूँ। ऐसा अनुभव तो मैंने अपने जन्म के बाद कभी नहीं किया। बेहद सरल।शांत और सौम्य। उनके नेतृत्व में भाजपा सरकार के एक के बाद एक फैसले ने मेरे ऊपर लगे बीमार और पिछड़े होने के दाग को धो दिया।।।मैं विकास की कुलाँचे भरता एक आदर्श प्रदेश बन गया था। बीमारू प्रदेश से स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनने की राह पर चलने लगा।

इन उन्नहत्तर बरस में मैं अनुभवी  हो गया। संभावनाओं का प्रदेश बन गया हूँ। मेरा विकास एकाएक नहीं हुआ। एक सुनियोजित रणनीति बनायी गयी। विकास की संभावनाओं को तलाशा गया। विकास के बिन्दु तय किये गये। इस बात का खास खयाल रखा गया कौन पात्र है, कौन अपात्र है। रेवडिय़ां नहीं बांटी गयी। चिन्ह-चिन्ह कर अपनों को नहीं दिया गया विकास योजनाओं का ला।।योजनायें बनी आखिरी छोर पर बैठे आखिरी आदमी के लिये। सरकार उन तक चल कर गयी। उन्हें देखाभाला। उन्हें जानकारी देने के हर वो इंतजाम किया गया। कोशिश थी कि लाभ अधिकाधिक मिल सके। कहना ना होगा। आज मेरी जनता खुशहाल है। खुशहाली कागजों पर नहीं, वादों पर नहीं, भाषणों और बातों में नहीं। खुशी थी मेरे हर नागरिक के घर ऑंगन में। सच कहा जाए तो मैं महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंतिम जन की कल्पना को, सोच को साकार कर रहा था। 

हर दिन, हर माह और हर बार, बार, बार मुझे रोमांचित कर जाता है। हर दिन मेरे लिये यादगार बन गया। एक उजास झाबुआ से मंडला तक छा गयी।नाउम्मीद चेहरे खिल उठे। विकास की गूँज को मेरे लोगों ने ही नहीं सुना। इसकी गूँज आस-पड़ोस के प्रदेशों में भी हुई। दलगत भाव शून्य हो गये और उमा भारती से बाबूलाल गौर और शिवराजसिंह से डॉ। मोहन यादव ने जैसे मेरे कण-कण में रंग भर दिया। हर योजनायें मेरे लिये आदर्श बन गयी।मैं तो अपने मुकाम की तरफ अपने तारणहार डॉ। मोहन यादव की अगुवाई में आगे बढ़ ही रहा था। देश के दूसरे प्रदेशों के लोग भी मेरे राज्य की योजनाओं को पाकर निहाल हो उठे थे। मुझे सुख का अहसास कई बार हुआ जब देश के विविध मंचों पर मेरी सराहना हुई। मेरी योजनाओं को लागू करने की दूसरे राज्यों को नसीहत मिली। मेरे अपने प्रदेश की योजना पूरे देश के लिये नजीर बन गयी। मैं देश के लिये ऐसा नजीर बन जाऊँगा, इसकी कल्पना भी नहीं की थी।

डॉ. मोहन यादव। बरसों इंतजार करने के बाद कोई आया है जो आम आदमी का मुख्यमंत्री है। जिसमें मुख्यमंत्री होने का रत्तीभर दंभ नहीं है। कल वह जैसा था। आज भी वैसा ही है।उसकी बोली बात में नकलीपन नहीं है। वह नेता है। राजनीति नहीं जानता। वह मुख्यमंत्री है। प्रदेश का विकास चाहता है। वह अपने लोगों को मुस्कराता हुआ देख। स्वयं मुस्करा जाता है। दूसरों की आँखों में आँसू देखकर। उसके आँखें भी भीग जाती है। उसकी चिंता के केन्द्र में है छोटे अबोध बच्चे। वह माँ और बहनें। जिन्होंने कभी दुनिया नहीं देखी। जिन्हें हर बार सब्जबाग दिखाया जाता रहा था, आज उनके लिये आधा नहीं।पूरा आसमां है। मेरे लोग कैसे खुशहाल हो गये हंै। यह बताने चला तो शायद समय थम सा जाय। एक के बाद एक योजनायें। हर वर्ग के लिये। गरीब किसान, आदिवासी, महिला, युवावर्ग।ऐसे कौन लोग नहीं हैं जिनके हित में सरकार ने पहल न की हो।खुशहाली की कुछ बानगी देखे बिना न आप यकीन करेंगे। न मुझे चैन आएगा।

एक समय था जब मुझ तक पहुँचने वाली सडक़ेें बदहाल हुआ करती थी। इन सडक़ों को लेकर किस्से कहानी भी कहे जाते थे। आज मेरी सूरत बदल रही है। सडक़ों पर गाडिय़ांँ फिसलती हुई अपनी मंजिल की ओर भाग रही हैं। इन फिसलती सडक़ों ने भी मेरे विकास को पँख दिया है। विदेशी पूँजी निवेशकों की क्या कहें, मेरे अपने लोग उद्योग-धंधे लगाने में डरते थे। आज सडक़ों के जरिये विकास की नयी इबारत लिखी जा रही है। विदेशी निवेशकों के लिये मध्यप्रदेश पहली पसंद हो रही है। डॉ. मोहन यादव सरकार की कार्यशैली से अभिभूत निवेशक साथ चलने को तैयार हैं। बीते वर्षों में जो करार हुए, जो इकरार हुए। वह एक इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा व्यापार और उद्योग जगत में।

मेरे विकास की बानगी देखना है तो चलो, मेरी भगिनी के आँगन से बात शुरू करते हैं। स्त्री को शक्तिवान और सामथ्र्यवान बनाने की बात नहीं। बरक्कत की कहानी गढ़ी गयी है। स्त्री आर्थिक रूप से सक्षम होगी। तभी सशक्त होगी। आर्थिक आजादी के लिये जरूरी है सत्ता में भागीदारी। पहली दफा मेरे सल्तनत में महिलाओं के लिये तैंतीस फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया। स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की गयी। मेरे सरकार के इस पहल ने जैसे क्रांति की लौ जला दी। कहीं दबी। कहीं हताश स्त्री। मन में विश्वास का संचार हुआ। वह पूरी ताकत के साथ खड़ी हो गयी। यह स्त्री हमारे समय की लक्ष्मीबाई, अवंतिबाई और देवी अहिल्या हैं। शहर से लेकर गाँव गाँव में रहने वाली हर भगिनी अब स्वयं में ताकत है। स्वयं फैसला लेती हैं।

ताकत तो उस पिता को भी मिली है जिसकी कमर झुक जाती थी समय से पहले, जिसके पेशानी पर होता था सयानी बिटिया की चिंता। ब्याह कैसे करे, कहाँ से लाये दाम। पढऩे-पढ़ाने की बात तो दूर की कौड़ी थी। मेरे प्रदेश के पिता अब नहीं हो रहे हैं असमय बूढ़े। मिट गयी है उनकी पेशानी से चिंता की लकीरें। बिटिया जा रही है स्कूल, जा रही है कॉलेज। सरकार ने पिता की चिंता अपने पास रख ली है। पिता को कर दिया है चिंतामुक्त। ब्याह भी कराती है सरकार। बिटिया को नाम दिया लाडली लक्ष्मी। अब बिटिया जिस चौखट जाएगी। उस घर की लक्ष्मी कहलायेगी। पढ़ी-लिखी समझदार बहू। साथ में है सरकार की मदद से जुटाये हजारों रुपये। पिता भला क्यों करे चिंता। सरकार ने दी है बिटिया को मुस्कान। अब हर घर आंगन में खिलखिला उठी है लाडली की मुस्कान। बहनों को पुकारा गया लाडली बहना। छोटे-मोटे खर्च के लिए पिता-पति की बाँट जोहने वाली लाडली बहना अब खुद सक्षम हैं। उनके हाथ में खर्च करने डॉ. मोहन यादव पूरे 15सौ रुपये दे रही है। वे छोटा-मोटा काम कर इन पैसों से खुद का रोजगार भी खड़ा कर रही हैं। आत्मनिर्भर बनती बहनों को देखकर मेरे चेहरे पर खुशी दौड़ जाती है।  

मेरे अन्नदाता जैसे निराशा के सागर में डूब उतर रहे थे। उनके सामने घनघोर अंधेरा था। रोशनी की कोई सूरत नजर नहीं आ रही थी। उनकी निराशा। आशा में बदल गयी। उनका खोया विश्वास लौट आया। यह विश्वास। यह आस दिलायी सरकार ने। उनके हाथों को थाम लिया। उनके आँखों के आँसू पोंछ लिये। कर्जे से मुक्त कर दिया।नये कर्जे में ब्याज की रकम मामूली कर दी गयी। जब सरकार ने हाथ थामा। तब प्रकृति दयावान बन गयी। घनघोर बारिश में किसान के सारे दुख बह गये। ट्रेक्टर-ट्रॉली में लदी फसलों को देख, रोता किसान मुस्करा उठा। समर्थन मूल्य ने किसान की संदूक को भरा दिया। आने वाले मौसम की चिंता तो दूर हुई। अब वह एक बार फिर अन्नदाता कहलाने में गर्व करने लगा। 

मेरे अन्नदाता जब मुस्काने लगे। अब बारी थी मेरे धरतीपुत्रों की। जंगलों, कंदरओं में जीवन बसर करने वालों के नाम पर लोग बदल गये। नहीं बदली तो धरतीपुत्रों की जिंदगानी। इस बार न कोई वायदा। न कोई बात। उनके नाम पर बनती गयी योजनायें। पहुँच गयी एक बार सरकार उनके द्वार। खुल गये बंद किस्मत के ताले। जिन्होंने कभी नहीं देखा था रेल और न कभी देखा था बस। आज उनके बच्चे उडऩखटोले में बैठ कर जा रहे हैं सात समंदर पार। पढ़ रहे हैं दुनिया की किताब। बनकर लौट रहे हैं लाट साहब। इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट की पढ़ाई कर जी रहे हैं नईदुनिया की जिंदगी। जो रह गये घरों में, उनके घर हो गये रोशन। पानी और बिजली हो गया इंतजाम। सुविधाओं का मिल गया अंबार। एक नयी सुबह ने उनके जिंदगी में भर दी है रौशनी।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मुझे और सशक्त बना दिया है। कानून तोडऩे वालों और प्रदेश में अशांति मचाने वालों को ठिकाने लगाने में पीछे नहीं रहे। पहली बार ऐसा हुआ-‘नो बकवास, सीधी बात’ की तर्ज पर ऑन द स्पॉट फैसला होने लगा। मैं हतप्रभ हूँ कि कभी मेरी जमीं पर ही एक-एक समस्या के लिए चक्कर लगाना पड़ता था, अब बकवास की जगह खत्म हो गई है। आपको याद दिला दूँ कि मेरे ही सल्तनत में बेकार हो चुके हजारों कामगारों को सालों से उनका हक नहीं मिला था। अपने ही पैसों के लिए परेशान थे। मामला इंदौर की हुकूमचंद मिल का था। मोहन सरकार ने एक झटके में उन्हें उनका हक दे दिया। यही नहीं, मेरा माथा गर्व से ऊँचा हो गया जब दूसरे अन्य मिलों में सालों से ठंडे बस्ते में पड़े मामलों को निपटाने की पहल की जाने लगी। 

धर्मनिरपेक्षता की जो मेरी पहचान है, वह आजतलक मह$फूज है। एक वाकया जरूर सुनाना चाहूँगा। बात उज्जैन की है। शहर के विकास के लिए कुछ व्यवस्थित करने का प्लान बना। समस्या आयी कि बरसों से स्थापित धर्मस्थल को कैसे हटाया जाए? और वो भी दर्जन भर से अधिक। लेकिन जो कुछ हुआ, वह पूरे हिन्दुस्तान के लिए मिसाल बन गया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरपरस्ती में सभी लोगों ने आपसी चर्चा कर अपने अपने धर्मस्थल को शिफ्ट कर लिया। एक पत्ता तक नहीं खडक़ा। अद्भुत, अविस्मरणीय फैसला। मोहन सरकार का यह फैसला मुझे आश्वस्त करता है कि मैं सचमुच में हिन्दुस्तान का ह्दयप्रदेश हूँ।    

यह तो महज बानगी है मेरे विकास यात्रा की। विकास तो अभी शुरू ही हुआ है, अभी तो गाथा लिखा जाना शेष है। खुशियाँ, हँसी, मुस्कान और आत्मसम्मान से भरा हर नागरिक मेरा गर्व है। मैं आज अपने जन्मदिन पर इठला सकता हूँ। इतरा भी सकता हूँ। इतने लम्बे समय की प्रतीक्षा के बाद, मैं चल पड़ा हूँ एक नए  मध्यप्रदेश की डगर पर। तस्वीर साभार गूगल

मैं मध्यप्रदेश हूँ... देश का ह्दयप्रदेश

प्रो. मनोज कुमार मैं मध्यप्रदेश हूँ। हिन्दुस्तान का ह्दय प्रदेश। मेरी पहचान है  सतपुड़ा के घने जंगल, कल...कल कर बहती नर्मदा, ताप्ति, चंबल,...